शनिवार, 2 दिसंबर 2017

मत रक्खो



अपनी तशरीफ इधर मत रक्खो।
मेरी है चीज नजर मत रक्खो।।
तेरी बातों  में बड़ी फिसलन है,
मेरी राहों में बटर मत रक्खो।।
तेरी नजरों की धार काफी है,
मेरी गर्दन पे कटर मत रक्खो।।
तेरे खत से मेरा घर काँपता है,
उसके अंदर वे जिकर मत रक्खो।।
वक्त हर वक्त पलट सकता है,
काँप जाये वो जिगर मत रक्खो।।
सौंप तो दी तुम्हें गुल्लक अपनी,
मेरा क्या होगा फिकर मत रक्खो।।

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