शुक्रवार, 22 मार्च 2019

दोहे


राजनीति के फंद में, बोला माँ से पूत।
मेरे बप्पा वही हैं, दीजै मुझे सबूत।।1||

कोई चौकीदार है और कोई है चोर।
घुला चुनावी रंग है रहे परस्पर बोर।।2||

चौकीदारी करो या या फिर बेचो चाय।
जब तक वोटर नासमझ, कमी मौज में नाय।।3||

गहरी नदी चुनाव की, बड़ी तेज है धार।
हाथी सायकिल पर चढ़ा, कैसे होगा पार।।4||
 




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आवाज नहीं आई

22/03/2019
प्रातः 3:30 का समय, मोबाइल की घण्टी बजे जा रही है। अब क्या कहें मई के महीने में इसी समय तो नींद आती है, सो नींद में विघ्न पड़ गया। जब तक होशोहवास में आकर मोबाइल उठाता घण्टी बन्द। अपनी आदत किसी के मिसकाल का जवाब देने की नहीं है अतः फोन किनारे रखा और फिर शुरू हुई सोने की कोशिश। किन्तु फोन फिर बज उठा। कान में लगाया, हलो! हलो! उधर से कोई आवाज नहीं। 15 सेकेंड कॉल चल गई। फोन बन्द करके किनारे रखा। करवट बदली। फोन फिर चालू। फिर वही हलो! हलो! किन्तु उधर से कोई आवाज नहीं। यही क्रम चार-पाँच बार। कहीं मेरा मोबाइल तो खराब नहीं हो गया? जो उधर से आवाज नहीं आती।
मैंने अपना दूसरा फोन उठाया उसी नम्बर पर मिलाया, उधर फोन उठाया गया किन्तु आवाज नहीं आई। इतनी आश्वस्ति हुई कि चलो अपना फोन ठीक है। समस्या उधर से ही है किन्तु क्या? उसके फोन में कोई समस्या है या उसके जीवन में। जो बार बार फोन किये जा रहा है। कोई परिचित नम्बर तो था नहीं। कौन हो सकता था?  उधार किसी से लिया नहीं, वायदा किसी से किया नहीं।  नाते रिश्ते में कोई होता तो दूसरे नम्बरों पर फोन कर लेता।  यह भी हो सकता था फोन करने वाले को पता ही न हो कि उसका फोन खराब है और वह यह सोच रहा हो कि मैं जानबूझकर बहाना कर रहा होऊँ कि आवाज नहीं आ रही।
जो भी हो स्थिति दयनीय थी, अवश्य ही कोई मुसीबत का मारा था जिसकी समस्या सिर्फ मुझसे ही हल हो सकती थी  तभी तो बार बार फोन कर रहा था या कर रही थी। यदि कर रही थी तो और भी दयनीय है उसकी अनिर्वचनीय मधुर ध्वनि कानों तक नहीं आ पा रही है। जो भी हो फोन वाइब्रेशन मोड पर लगाया। फोन करने वाले संभावितों व सम्भावितियों के चित्र हृदय को रोमांचयुक्त पीड़ित कर रहे थे। विचार करते करते झपकी आ गई। 5:30 पर उठा तो मोबाइल में 50 से अधिक मिस्ड कॉल पड़ी हुईं थीं।
अरे!बाप रे बाप! मैंने फिर अपने फोन से इधर से कॉल करने का प्रयास किया, फोन उठा आवाज नहीं आयी। फिर भी मैंने इधर से कहा कि देखिये आप जो कोई भी हैं अगर मेरी आवाज आप तक पहुँच रही है तो आप इतना समझ लें कि आपकी आवाज इधर नहीं आ रही है आप किसी दूसरे नम्बर से कॉल करें। पता नहीं मेरी आवाज उधर नहीं पहुँची या कुछ और। उसी नम्बर से दिन भर कॉल करने के प्रयास होते रहे और मैं परेशान होता रहा। क्या बच्चे हैं जो मोबाइल से खेल रहे हैं किन्तु बैकग्राउंड साउंड आना चाहिए। कोई किसी मुसीबत में तो नहीं मुझे सबसे ज्यादा यही बात परेशान कर रही थी। लेकिन तमाम अटकलों के वाबजूद कुछ समझ नहीं आ रहा था। क्या करना चाहिए उसकी हर अगली कॉल पर हृदय की धड़कनें तीव्र हो जातीं थीं और मन की हलचल बढ़ जाती थी।
शाम को 6 बजे फिर फोन आया , उठाया। अहा हा! क्या मधुर आवाज थी सुबह से जान निकली जा रही थी अब तो बिल्कुल ही निकल गयी।
“सुनो जी आप घर पर कब आ रहे हैं? वाह क्या स्नेहिल निमन्त्रण था?"
किन्तु इतना स्नेहिल भी नहीं कि मैं अपनी परेशानी दबा पाता, बोला, “दिमाग खराब है तुम्हारा सुबह से परेशान कर रखा था इधर आवाज नहीं आ रही थी।”
“हाँ, वो मोबाइल बिगड़ गया था, अभी थोड़ी देर पहले ही तुम्हारे भैया ने मुझे बताया कि इस फोन से न तो आवाज आ रही है और न जा रही है। दूसरे सेट में सिम डाल कर बात कर रही हूँ।”
“कौन भइया”
“अरे राहुल”
"कौन राहुल”
“अरे कहाँ लग गया फोन? कौन बोल रहे हैं आप”
"ये हरदोई है। आपने कहाँ के लिए मिलाया था?"
“सॉरी रॉंग नम्बर”
"ओके!”
पेट की गैस, हृदय का बोझ सब जा चुके थे साथ ही नींद भी आँखों से उड़ गई थी।


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सोमवार, 18 मार्च 2019

प्रियंका जी

मोदी सरकार 55 वर्ष तक चिल्लाती रही बेटी बचाओ पढ़ाओ| राहुल जी को बहुत देर से समझ में आया वो भी इतना कि बेटी पढ़ाओ बेटी बढ़ाओ| अब राहुल जी तो ठहरे कुंवारे सो बेटी तो थी नहीं| हाँ बहन थी सो ऐन इलेक्शन के वक्त प्रियंका जी को बढ़ा दिया आगे| बोल जय गंगा मइया की विशेषकर इलाहाबाद से बनारस वाली की| एक बात और इससे पता चलता है कि पप्पू को लग रहा है अब अपने बूते कभी पास नहीं होगा| 
एक बात और लोग एयर स्ट्राइक को लेकर प्रायः सरकार से सबूत माँग रहे हैं| इस पर एक दोहा 
राजनीति के फंद में, माँ से बोला पूत|
मेरे बप्पा कौन हैं, दीजे मुझे सबूत||

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सोमवार, 11 मार्च 2019

धार धर लो

11/03/2019
वोट है तलवार इस पर धार धर लो।
और अपने आप पर उपकार कर लो।।
देश उन्नायक चयन का समय है ये।
जोकरों खलनायकों का मान हर लो।।
तुम मदारी हो जमूरे सामने हैं।
एक निर्णय पंचसाला खेल कर लो।।
लोकतंत्री नाव की पतवार कर में।
ले चलो तट या कि फिर मझधार मर लो।।
जब बटन पर उँगलियाँ हों तो ठहरकर।
दस शतक की दासता को याद कर लो।।
देश का आँचल जो श्यामल हो गया है।
अब समय घर, वसन, तन, मन 'विमल’ कर लो।।


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शुक्रवार, 8 मार्च 2019

सत्ता का प्रभाव

कंटकों से भरे हुए, पथ में जो जाना पड़े,
पैर में पड़े जूतों से, प्यार हो ही जाता है।
जहाँ मारपीट की हों थोड़ी भी सम्भावनाएं,
हाथ में लगे तो हथियार हो ही जाता है।
पत्थरों में नाम जब खोदा नहीं जाता बन्धु,
नेताजी का खून खौल, क्षार हो ही जाता है।
सत्ता के जूते पर हो पॉलिश अहंकार की,
चोरों व उचक्कों में, रार हो ही जाता है।।

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