गुरुवार, 16 सितंबर 2021

कौन तुमको दूर अपने से करे

अंजुली में हैं सजाये सुमन अधरों से झरे।
नैन झिलमिल दीप हो मन को उजाले से भरे।
छवि तुम्हारी ओ प्रिये हरती सदा मन की थकन,
इस दशा में कौन तुमको दूर अपने से करे।
पूर्णिमा का चाँद सम्मुख हो रही साकार हो
स्वर्ग से उतरी परी का स्वर्णमय आकार हो
तुम हमारे सदन-उपवन-वन-विजन में बस गयी,
प्रात की पावन सुरभियुत पवन का व्यवहार हो।
तंत्रिकाएं हो गयीं झंकृत अजब अनुभूति से,
दश दिशाएं अमृत भरकर कलश निज कर में धरे।
इस दशा में कौन तुमको दूर अपने से करे।
काम है या मोह है या प्रेम है या वासना।
नेह का आनन्द है या बिछुड़ने की त्रासना।
कौन विश्लेषण करे या संश्लेषण मेंं जुटे,
कर रहा अव्यक्त की जैसे सतत आराधना।
जिस घड़ी से आ गया सानिध्य में तेरे प्रिये!
हो गया मैं पतन या उत्थान के भय से परे।
इस दशा में कौन तुमको दूर अपने से करे।

विमल 9198907871

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