शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

रवि साकार देवता जग में



प्राची में सूरज मुसकाया, धरती का कण कण हर्षाया

धूप गगरिया क्या छलकायी, जीवन का सागर लहराया।

सूरज दादा के आने से, अँधियारे ने पँख समेटे।

सारी रात राज में जिसके, बच्चे बूढ़े भयवश लेटे।

मोती जैसे दाँत दिखाकर, खिल खिल हँसे पेड़ के पल्लव।

सुन्न घोंसले संज्ञा पाकर, आसमान में करते कलरव।

मग जीवंत चले बटरोही, हाटों में हलचल हहरायी।

अरूण सूर्य की किरण श्रंखला, रज में स्वर्णप्रभा बन छाई।

निराकार भी होगा कोई, रवि साकार देवता जग में।

इसी परम की ऊर्जा रमती, थलचर, जलचर, नभचर सबमें।

 

 

 

शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

ढंग के कपड़े



साज सिंगार प्रभाव विचित्र कभी मन में अनुमान किया करो।
ओ! सजनी! तन वस्त्र धरे पर श्री छवि का धरि ध्यान लिया करो।
रूपसि रूप की पारखी हौ तुम तो पटुता के प्रमाण दिया करो।
सृष्टिज अंग मिला सुभगे निज शक्ति अमूल्य का मान किया करो॥१॥
तन ढाँप रहे ढंग के कपड़े बहू बेटी के बीच का भेद बतावैं।
रमणी दल बेढँग वस्त्र धरे गणिका-गण का अहसास करावैं।
पहिनावा लखे जन वाद करें जननी और सास के चिन्ह गिनावैं।
ननदी और भावज भेद कहाँ पहिराव में बुद्धि सुजान सुनावैं ॥२॥
देखा अभी था तो हूक उठी कसके इसको निज अंग लगाऊँ।
देख रहा अब तो हिय में चरणाम्बुज धो चरणामृत पाऊँ।
था मन में कि कपोल छुऊँ अब है मन में निज शीश चढ़ाऊँ।
है पहिनावे में ये क्षमता कुलदीपिका से कुलहीना कराऊँ॥३॥

हमारीवाणी

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