पुराना वर्षअलविदा कह रहा है, नया वर्ष बस कुछ ही घंटे दूर खड़ा है|
ऐसे में दो छोटी छोटी रचनायें अपने ब्लॉग पाठकों के लिये|
[1]
चल पड़ा वो छोड़कर मुझको जवानी की तरह,
बिन रुके बहते हुए दरिया के पानी की तरह||
वो समझ आया नहीं इस बार भी जैसे गणित,
मैं लगाता रह गया अनपढ़ अजानी की तरह||
[2]
अब चलो जो आ रहा उस पर भी डालूँ एक नजर,
बज उठे उम्मीद है इस बार तो दिल का बजर||
हाथ फैलाये खड़ा स्वागत में मैं उसके लिये,
छोड़कर जा ही नहीं सकता है वो मेरी डगर||
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