सोमवार, 11 दिसंबर 2017

कुतुबमीनार हो ऊँची



04/12/2017
चाहता तो था कि एक दीवार हो ऊँची।
और अपने बीच में तकरार हो ऊँची।।
ये जमाना देखता है साथ में हमको,
भर अचम्भे यों कुतुबमीनार हो ऊँची।।
आ गये हम तुम यहाँ रस्में निभाते बस,
तुम भी नाटक की बड़ी किरदार हो ऊँची।।
कट गयी आधी झगड़ते रह गये हम तुम,
अब तो रिश्ते में प्रिये झनकार हो ऊँची।।
तुम झगड़कर प्रेमकी बरसात में माहिर,
तोड़ में भी जोड़ की फनकार हो ऊँची।।


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