दूर कहाँ जायें जिंदगी से उकताकर?
यहीं रहते हैं थोड़ी दूरियाँ बनाकर।।
ज्यादा प्रेम मुझे हजम नहीं होता,
तुम रूठो, मैं खुश रहूँ तुम्हें मनाकर।।
चारों ओर समय के अजीब रँग बिखरे,
दो चार ही सही ले चलें हम भी चुराकर।।
रह लेंगे हम सड़क पर टेन्ट में प्यारे,
बनायेंगे नहीं अपना किसी का घर गिराकर।
कृपया पोस्ट पर कमेन्ट करके अवश्य प्रोत्साहित करें|
यहीं रहते हैं थोड़ी दूरियाँ बनाकर।।
ज्यादा प्रेम मुझे हजम नहीं होता,
तुम रूठो, मैं खुश रहूँ तुम्हें मनाकर।।
चारों ओर समय के अजीब रँग बिखरे,
दो चार ही सही ले चलें हम भी चुराकर।।
रह लेंगे हम सड़क पर टेन्ट में प्यारे,
बनायेंगे नहीं अपना किसी का घर गिराकर।
कृपया पोस्ट पर कमेन्ट करके अवश्य प्रोत्साहित करें|
अच्छी पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बड़े भाई
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
हार्दिक धन्यवाद बहन
हटाएंसार्थक सृजन।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बड़े भाई
हटाएंकिसी को किता कर अपना कुछ भी बनाया तो क्या बनाया ...
जवाब देंहटाएंअच्छा दृष्टिकोण ... सार्थक रचना भाव ...
हाँ बन्धु किन्तु आजकल अधिकतर लोग अपना बना न सकें किन्तु दूसरों का बिगाड़ने में अवश्य लगे हैं सादर धन्यवाद|
हटाएं
जवाब देंहटाएंयहीं रहते हैं थोड़ी दूरियाँ बनाकर।।
आजके समाज और उसमे पल रहे रिश्तों का सच :)
ज्यादा प्रेम मुझे हजम नहीं होता,
हज़म होगा भी कैसे , हर प्रेम के पीछे छुपा कोई और ही मालाब होता हैं
तुम रूठो, मैं खुश रहूँ तुम्हें मनाकर।।
हर पंक्ति सोच को अपने साथ गूंधती जाती हैं और अपनी आपबीती याद आती जाती हैं
सोच को बाँध के रखने वाली सार्थक रचना
सदर नमन आदरणीय
सारगर्भित व विस्तृत टिप्पणी के हार्दिक आभार व सादर नमन बहन।
हटाएंअति उत्तम पंक्तियाँ महोदय
जवाब देंहटाएंआपके मार्गदर्शन के लिए मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
ब्लॉग पर आने व अपने ब्लॉग पर आमंत्रित करने के लिएधन्यवाद।
हटाएं