( चित्र dabangdunia.in/news/aisha-kyun/story/29625.html से साभार )
30/11/2017
बर्फ के
फाहे भले हैं इनको पानी मत करो।
अब चमन
में बुलबुलों से छेड़खानी मत करो।
आपने कविता
कही है गद्य भी साबुत नहीं।
नाम पर
साहित्य के ये बदजुबानी मत करो।।
हर नफे
पर दोस्त मैं देता नहीं अपना दिमाग,
फालतू में
हर शमा की कदरदानी मत करो।।
जौहरी ही
जानता है दाम नग पर काम का,
हाट में
हाँकें लगाकर बदगुमानी मत करो।।
मैं अकेला
ही बहुत हूँ थामने को आंधियाँ,
इस कमर
को साधने की मेहरबानी मत करो।।
बन्जरों
में हम बहारों की हँसी लौटायेंगे,
इस अहद
पर बन्धु मुझसे पहलवानी मत करो।।
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