गुलब्बो कहाँ तक गुलाबी रहेगी,
नजर से कहाँ तक शराबी रहेगी,
मगर नेह की अग्नि उर से उठी है,
जहाँ तक रहे लाजवाबी रहेगी।।1।।
गला ढल गया गुम हुआ है तरन्नुम,
अभी इल्तिजा गर मिले वो तबस्सुम,
गुलब्बो समाँँ बाँध देगी जहाँ में,
बना देगी जन्नत मिले जो जहन्नुम।।2।।
नोट-गुलब्बो प्रायः मेरी कविताओं का ऐसा काल्पनिक पात्र है जिसे मैं प्रेम करता हूँ।
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (15-06-2022) को चर्चा मंच "तोल-तोलकर बोल" (चर्चा अंक-4462) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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हार्दिक आभार बड़े भाई
हटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंगुलाबों ख़ुद पर इतराई होंगी।
सादर
पता नहीं बहन, किसी अन्य के मन की बात, टिप्पणी के लिए सादर आभार
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