तिश्नगी है उम्र की चिन्ता न कोई रिस्क की।
पाठशाला खोल दी ट्रेनिंग मिलेगी इश्क की।।
प्रिंसिपल का पद सुरक्षित है उसी के वास्ते,
डर कोरोना का नहीं या फिर जरूरत विक्स की।।
ऑनलाइन क्लास तो सपना मुँगेरीलाल का,
अपने बच्चों की जगह हमने तबेला फिक्स की।।
छोड़ दूँ घरबार मैं इतना निकम्मा हूँ नहीं,
इतना कर्मठ भी नहीं एक्टिंग करूँ फकीर की।।
चाँद-मंगल की समस्या हमने सुलझाईं बहुत,
खाज जाती ही नहीं है मित्र कोहनी तीर की।।
बहुत सुन्दर और सार्थक ।
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धन्यवाद बड़े भाई सच कहा
हटाएंबहुत सुन्दर व्यंग और तंज करती यथार्थपूर्ण रचना ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बहन
हटाएंबहुत सुन्दर व्यंग्यात्मक सृजन ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बहन।
हटाएंवाह ... सुन्दर हास्य का भाव लिए ...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ...
सादर धन्यवाद
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