रविवार, 31 दिसंबर 2017

स्वागत

पुराना वर्षअलविदा कह रहा है, नया वर्ष बस कुछ ही घंटे दूर खड़ा है| 
ऐसे में दो छोटी छोटी रचनायें अपने ब्लॉग पाठकों के लिये|


[1]
चल पड़ा वो छोड़कर मुझको जवानी की तरह,
बिन रुके बहते हुए दरिया के पानी की तरह||
वो समझ आया नहीं इस बार भी जैसे गणित,
मैं लगाता रह गया अनपढ़ अजानी की तरह||
[2]
अब चलो जो आ रहा उस पर भी डालूँ एक नजर,
बज उठे उम्मीद है इस बार तो दिल का बजर||
हाथ फैलाये खड़ा स्वागत में मैं उसके लिये,
छोड़कर जा ही नहीं सकता है वो मेरी डगर||



 



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शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

जौनपुर



यह नगर उत्तर प्रदेश में गोमती नदी के किनारे स्थित है इसकी स्थापना सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने अपने भाई जूना खां (मुहम्मद बिन तुगलक) की याद में की थी| जब तैमूर ने हिन्दुस्तान पर आक्रमण किया तब उस समय ख्वाजा जहाँ ने दिल्ली से अपना नाता तोड़कर स्वतंत्र जौनपुर राज्य की नींव डाली| उसने मलिक-उस-शर्क की उपाधि धारण की| मलिक सरवर ने यहाँ शर्की वंश की नींव डाली| शर्की वंश का प्रमुख, योग्य व प्रसिद्ध शासक इब्राहिम शर्की था| उसके काल में जौनपुर ने कला एवं साहित्य के क्षेत्र में बहुत उन्नति की अतः इसे ‘शिराजे-हिन्द’ कहा गया| इस युग में वास्तुकला की विशिष्ट शैली विकसित हुई जिसका शानदार नमूना 1408 में बनी ‘अटाला मस्जिद’ व ‘झंझरी मस्जिद’ है| इसे पूर्व का शिराज भी खा जाता है| 



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जोधपुर



इस नगर की स्थापना 1459 में राव जोधा द्वारा की गयी थी| उसने अपनी राजधानी मंडोर से हटाकर जोधपुर को बनाया था| जब शेरशाह सूरी ने यहाँ के शासक मालदेव को सेमल के युद्ध में हराया तो शेरशाह ने कहा था कि “एक मुट्ठी बाजरे के लिए मैं हिन्दुस्तान की बादशाहत खो देता”| औरंगजेब के समय जोधपुर का शासक जसवंत सिंह था| जोधपुर का किला 120 मीटर ऊँची पहाड़ी पर स्थित है| दुर्ग के भीतर राजप्रसाद, शस्त्रागार, मोतीमहल, जवाहर खाना आदि मुख्य इमारते हैं| किले के उत्तर की ओर ऊँची पहाड़ी पर थड़ा नामक एक भवन है जो पूरी तरह संगमरमर का बना है| जोधपुर की विशेषता यहाँ की कृत्रिम झीलें और कुएं हैं| 



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उदयगिरि



यह स्थल मध्यप्रदेश के रायसीन जिले में बेतवा तथा बेश नदी के मध्य विदिशा का एक उपनगर था| चन्द्रगुप्त द्वितीय के उदयगिरि गुहालेख में इस पहाड़ी का वर्णन है यहाँ पर 20 गुफाएं हैं जो हिन्दू व जैन मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं| मूर्तिकला की दृष्टि से 5वीं गुफा जिसमें भगवान विष्णु के वाराहवतार का वर्णन है विशेष प्रसिद्ध है| छठीं गुफा में दो द्वारपालों, विष्णु, महिषासुर एवं गणेश की मूर्तियाँ हैं| उदयगिरि के द्वितीय गुफालेख में चन्द्रगुप्त के सचिव पाटिलपुत्र निवासी वीरसेन के द्वारा शिवमंदिर के रूप में गुफा का निर्माण कराने का उल्लेख है| तृतीय उदयगिरि गुफालेख में शंकर नामक व्यक्ति द्वारा गुफा संख्या 10 के द्वार पर जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्ति प्रतिष्ठित कराए जाने का उल्लेख है| 



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किशनगढ़



जयपुर व अजमेर के मध्य एक नगर जिसकी स्थापना 1575 ईस्वी में जोधपुर के राजा उदयसिंह के पुत्र किशनसिंह ने की थी| यह अपनी चित्रकला की विशिष्ट शैली के लिए प्रसिद्ध है| जिसका प्रारम्भ किशनसिंह के पुत्र सहसमल के समय से माना जाता है| महाराज सावंतसिंह के समय में बना निहालचन्द का बनी-ठनी चित्र अत्यंत प्रसिद्ध है| कहा जाता है कि बनीठनी सावंतसिंह की प्रेयसी थी| 




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अहिच्छत्र



महाभारतकाल में उत्तर पांचाल की राजधानी रहे इस नगर के अवशेष बरेली-उत्तर प्रदेश के रामनगर गाँव में प्राप्त हुए| समुद्रगुप्त की प्रयाग-प्रशस्ति में वर्णित ‘अच्युत’ नाम के राजा की मुद्राएँ  यहाँ से प्राप्त हुई हैं| यह आज भी जैनों का एक महत्वपूर्ण स्थल है, यहाँ के खण्डहरों से चक्की के पाट के आकार का स्तूप मिला है| इसे ‘पिसनहारी का छत्र’ या ‘ढूह का स्तूप’ कहते हैं| 





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