हम धरा की प्यास हरने आ गये हैं।
कृषकजन-संत्रास हरने आ गये हैं।
भर लिये हैं सागरों से कोष अपने,
नभ चढ़े परिहास करने आ गये हैं।
घन घने हम, गहन उर में ले रहस्य,
जगत में उल्लास भरने आ गये हैं।
वन, भवन, पथ, रथ, उदधि, नग,
हर किसी में श्वास धरने आ गये हैं।
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बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बड़े भाई
हटाएंबहुत प्यारी रचना आदरणीय विमल जी | मेघों का आह्लाद राग शब्दों से झर रहा है | सुंदर शब्दावली और भाव | हार्दिक शुभकामनाएं इस भावपूर्ण रचना के लिए |
जवाब देंहटाएंसुन्दर व उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए धन्यवाद बहन।
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