शनिवार, 31 दिसंबर 2022

बेरहमी

दिसम्बर २००६

वह बहुत खूबसूरत और दिल की सच्ची है।
जैसे तुरंत पैदा हुई सूअर की बच्ची है।
रात भर करवटें बदलीं और बहुत तड़पा किये।
हाय कितनी बेरहमी से काट गया बिच्छी है।
जाने कैसी हड़बड़ी थी गिर गया मैं खाट से,
घुस गयी थी एक चुहिया इस कदर रजाई में।
गुदगुदी का लुत्फ पूरा हाय उस दिन गया,
पी गया जिन्दा जुएं को भूल से दवाई में।
मैंने समझा चल गयी था आँख में भुनका पड़ा,
इस समझ का खमियाजा भी बहुत महँगा पड़ा।
चाँद पर जूते मिले बिखरे हुए दो चार सेट,
राज कैसा चाँद पर जो दाग ये गहरा पड़ा।
बन्द सारी गुफ्तगू है आजकल आबोहवा से,
बेवफा थी रूह भी क्या साँस को रुकना पड़ा।

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गुरुवार, 29 दिसंबर 2022

शिल्प का अनुराग

नई कविता के प्रवाह में भ्रमित त्रुटिपूर्ण गद्य लेखन कर उसे कविता का रँग प्रदान करने वाले स्वनामधन्य मनीषियों के लिए। आत्मावलोकन करें और परिमार्जन करें। अन्यथा आपकी रचना पढ़कर मैं अथवा अन्य आपकी रचना पर चाहे जैसी प्रसंशात्मक टिप्पणी चेंप दें किन्तु निर्मम समय आपको किनारे कर आगे बढ़ लेगा। आप जुगाड़ से पाठ्यक्रम आदि में स्थान प्राप्त कर लें और परीक्षार्थी अच्छे अंकों की अभिलाषा में अनमने चित्त से आपको रट भले लें। हृदय का सम्राट होने के लिए हृदयग्राही रचना होगा। 

आप यदि पूजा करें पथ नाग पाकर।
तृप्त हों वे रक्तबिन्दु-पराग पाकर।।
यज्ञ सारे ही हुए निज तृप्ति के हित,
देवता भी तृप्त हों निज भाग पाकर।।
यूँ बसंती सुरभि कम मादक नहीं है
किन्तु मस्ती बहुगुणित हो फाग पाकर।।
मानता हूँ पुष्टि होती अन्न में ही,
किन्तु बढ़ता स्वाद थोड़ी आग पाकर।।
मात्र आटा मत बिखेरो भूमि तल पर,
चौक पुरती है कला का पाग पाकर।।
भाव अन्तःकरण में जो जन्मते हैं।
खिलखिलाते शिल्प का अनुराग पाकर।।

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शनिवार, 3 दिसंबर 2022

कोई पागल तुम्हारे लिए है

खास काजल तुम्हारे लिए है।

नेह संदल तुम्हारे लिए है।

उनसे जाकर के इतना बता दो,

कोई पागल तुम्हारे लिए है।

बूँद दो बूँद हित रो रहे हो,

सारा बादल तुम्हारे लिए है।

यूँ तो बहुतों ने हमको है पीटा,

बंदा घायल तुम्हारे लिए है।

होगा फाटक भले बंद सच है,

खोली साँकल तुम्हारे लिए है।

रविवार, 27 नवंबर 2022

देवर

घृणा को नैन में भरकर न छवि का ध्यान भी करना।
अगर है प्रेम किंचित भी तो उनका मान भी करना।
कपोलों पर भले पिटने की मेरे नीलिमा होगी,
अनुज! भौजाइयों से डर न तुमको ज्ञान भी रखना।।1।।
चढ़ा सावन सजन परदेश झूला कौन डालेगा?
बसन्ती पवन फागुन बिन देवर के मौन सालेगा।
दिवाली में बड़े भैया अगर घर देर से पहुँचे,
तो ड्योढ़ी पर दिवाली के दियों को कौन बालेगा??2??
हमारे देश में वर से अधिक देवर पियारा है।
निजी घर हो कि हो ससुराल वो सबका दुलारा है।
जहाँ देवर बना है पुत्र भाभी बन गयी है माँ,
कुटी का भार प्रभु ने लखन के कंधों उतारा है।।3।।

शुक्रवार, 25 नवंबर 2022

टिड्डा


ये महाशय किवाड़ पर ध्यान लगाये हैं। देखने में तो किसी पेड़ की पत्ती लग रहे हैं। किन्तु सावधान ये असली बहुरूपिये हैं ठग रहे हैं। फिल्म इन्डस्ट्री का कोई भी एक्टर और एक्ट्रेस इन सा अभिनय नहीं कर सकता। गूगल गुरु हर चीज की पोल खोल सकते हैं मगर गूगल लेन्स ने इन्हें पहचान नहीं पाया। 
जितने ईश्वर के रूप हो सकते हैं उतने इसके। यह टिड्डा है। हमारे यहाँ इसे बोट कहते हैं। 
इसमें रंग रूप बदलने की अद्भुत क्षमता होती है। हम मनुष्य हैं बस इस बात पर फूले नहीं समाते।

बुधवार, 16 नवंबर 2022

पत्तल चाटेगा कौन

कुत्ते सभी स्वर्ग जायेंगे तो पत्तल चाटेगा कौन?
यही प्रश्न कुत्तों से कर दो या लड़ते या रहते मौन।
पत्तलें भी जायेंगी स्वर्ग।
बिल्ली घंटी लेकर टहले चूहे सुनकर रहते मस्त।
चट कर जाती एक-एक को अपनी अपनी में सब व्यस्त।
जगत यह षड्यंत्रों का मर्ग।
ठेका लेकर बैल चल दिये खींचेंगे शेरों की खाल।
पढ़े लिखे बैलों की आदत छील रहे मृतकों के बाल।
तथ्य बिन हैं सर्गों पर सर्ग।
मैं तो समता की धरती पर दिखलाने को उत्सुक नृत्य।
किन्तु हृदय फटने लगता है देख देखकर जन के कृत्य।
घुस पड़े हैं वर्गों में वर्ग।

मर्ग-चरागाह/घास का मैदान
सर्ग-अध्याय
वर्ग-समूह, जाति,

शनिवार, 12 नवंबर 2022

नशा


चीलों के घर ही मिले, बन्धु! अस्थियाँ-माँस।
खरगोशों का कुटुम्बी, कठिन बचानी साँस।।
द्वेष नहीं है रंच भी, अपनी अपनी राह।
मुँह तो केवल एक है, आह करे या वाह।।
मंचों की चिंता नहीं, कवि हूँ भाँड़ न मित्र।
केवल खुद के ही लिए, रचूँ शब्द के चित्र।।
नशा जरूरी है बहुत, करते सुर नर नाग।
बिना नशे पनपे नहीं, कोई रँग या राग।।
चाय और नमकीन भी, सबको नहीं नसीब।
हम बस उससे काम लें, जो भी मिले करीब।।
ठग भी हुए हबीब हैं, रहा नहीं एतबार।
बैलगाड़ियाँ दे गए, ले गए मोटर कार।।

गुरुवार, 3 नवंबर 2022

ओ कुड़ी तू मुझसे पट

आपने हाँक लगाकर सामान बेचने वालों को देखा ही होगा। क्या कलात्मक ढंग से आवाज लगाकर अपने ग्राहक को केन्द्र में रखते हैं कि बस ग्राहक मना नहीं कर पाता। दूसरी ओर प्रेमी जन होते हैं बड़ा भावविभोर होकर प्रणय निवेदन करते हैं बेचारे पिटते पिटते बच जाते हैं, कभी पिट जाते हैं और कभी उनके वो पट जाते हैं। मेरा क्या होगा राम जाने? मैंने तो पहले वाली युक्ति ही उचित समझी। आनन्द के लिए मैंने लिखा आनन्द के लिए आप पढ़ें। मस्तिष्क को थोड़ी देर के लिए छुट्टी दें। 

आजूबाजू वाले छड, 
ओ! कुड़ी तू मुझसे पट!
नहीं सोच मैं पका हुआ हूँ,
नर्म डाल पर टँगा हुआ हूँ,
अब तक टपका नहीं अगर मैं, 
तेरी खातिर रुका हुआ हूँ।
एक बार तो मुझको चख,
मैं झट से जाऊँगा कट।।
ओ! कुड़ी तू मुझसे पट!
कुछ न करे तो यहीं खड़ी रह,
फोटो जैसे फ्रेम जड़ी रह,
आँखों की राहों से घुस जा,
दिल के बेड पर सदा पड़ी रह।
मैं भी बिल्कुल नहीं हिलूँगा,
रसिक प्रिये! मैं भी उद्भट।।
ओ ! कुड़ी तू मुझसे पट!
शरद-ग्रीष्म की चिंत नहीं कर,
केवल अपना चित्त सही कर,
चलो प्रेम का वित्त बढ़ायें,
ना ना कर मति नहीं दही कर।
खा लेना तू चाउमीन भी,
अभी न भूखी जा मरघट।
ओ ! कुड़ी तू मुझसे पट!

रविवार, 30 अक्टूबर 2022

संगिनि अपनी

अपनी प्रियतम प्रेम से, फेरे सिर पर हाथ।
बन्धु अभी तक है बना, सिर-बालों का साथ।
सिर-बालों का साथ, कलर है बिल्कुल पक्का।
लड़कों को आश्चर्य, चकाचक अब भी कक्का।
करिए साँचा प्रेम, और क्या माला जपनी?
सिर साजे सम्मान, साध लो संगिनि अपनी।।

सोमवार, 17 अक्टूबर 2022

उत्पाद और फार्मूला

हिन्दी और उर्दू दो प्रमुख भारतीय भाषाएं हैं, जो वर्तमान में अधिकांश जन के द्वारा प्रयोग की जाती हैं। कवि और लेखक प्रायः इन्हें बहनों की संज्ञा प्रदान करते हैं। मैं स्वयं अपनी बोलचाल में प्रायः उर्दू शब्दों का प्रयोग करता हूँ। मेरा यह भी विश्वास है कि हिन्दी साहित्य में अन्य भाषाओं के वे शब्द जो जनमानस में प्रचलित हो गए हैं उन्हें स्वीकारने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए।
किसी भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है कि वह मनचाही भाषा का प्रयोग करे और मैं उसके इस अधिकार का सम्मान करता हूँ। भाषाई भिन्नता किसी को निम्नतर या उच्चतर नहीं बनाती। किन्तु यहाँ मेरी खिन्नता उन कवियों व लेखकों से है जो नाम के साथ तो कवि या लेखक चेंप लेते हैं और लिखते हैं उर्दू गजलें और शेर। बिल्कुल उस प्रोडक्ट की तरह जो अपने रैपर पर छपे फार्मूलेशन से बिल्कुल मेल नहीं खाता। कठिनाई तो तब होती है जब विद्वता प्रदर्शन के लिए हठात उर्दू (मूलतः अरबी व फारसी) के ऐसे अप्रचलित शब्दों का प्रयोग करते हैं जिनके अत्यधिक सरल व प्रचलित स्थानापन्न उपलब्ध हैं। कुछ रचनाकार तो उर्दू् और हिन्दी शब्दों का ऐसा अनुपात रखते हैं कि हिन्दी लंका के रावणराज में रामभक्त विभीषण दृष्टिगोचर होती है। अरे भाई! किस लिए लिख रहे? रद्दी कहाँ से उत्पन्न हो रही है? या तो जन का मनोरंजन करो या फिर कुछ उपयोगी लिखो। यह भी कि नाम के आगे देहलवी, बरेलवी, लखनवी, संडीलवी जैसे टाइटिल लगाओ और मियां शायर हो जाओ। अल्लाह आपको तौफीक अता फरमाए और आपको उर्दू शायरी में नामवर कर दे। क्या कठिनाई है? आपको रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी जी याद तो होंगे। 
भाषा एक ऐसा संवेदनशील उपकरण है जिसकी गम्भीरता को न समझने से ही केशवदास के जैसा उच्चकोटि का रचनाकार पर हासिये पर चला गया और तुलसीदास जी जैसे साधारण रचनाकार उस प्रतिष्ठा को प्राप्त कर गये जिसके आगे मेरे सहित समस्त विश्व नतमस्तक है और प्रेरणा प्राप्त करता है।
मेरे एक मित्र हैं, विद्वान हैं हिन्दी, अंग्रेजी और संस्कृत पर अच्छा अधिकार रखते हैं। लिखते हैं कविता विद्वता से लबरेज। नई वाली जो न तो पूर्णतया गद्य है और न पद्य। यहाँ तक तो ठीक था किन्तु जब वे संस्कृत के शब्दों को ठूँस ठूँस कर भरते हैं तो समझना कठिन हो जाता है कि खीर खाएं या शब्दकोश को लेकर चाँदीवर्क हटाएं। अर्थात देखने में सुन्दर किन्तु खाने में कठिन, पचाने की चर्चा तो सुधी जन छोड़ ही दें।
यदि हिन्दी के संयोजकों व कारक शब्दों को पृथक करके विभक्तियों का ही प्रयोग करते तो कम से कम संस्कृत साहित्य की ही श्रीवृद्धि हो जाती और गीर्वाणभारती पर बड़ा उपकार होता साथ ही हिन्दी का भी उपकार होता। हिन्दी कम से कम उनकी रचनाओं में अपना अस्तित्व तो खोज पाती।
तो अगली बार जब लेखनी चले तो कवि बनें कवि के चोले में शायर अथवा शंकराचार्य नहीं। यह भी ध्यान दें कि रचना में कितनी हिन्दी खिलखिला रही है और कितनी दूसरी भाषा। यदि हिन्दी सिसक रही है तो स्वयं को हिन्दी का सपूत कहने से परहेज करें और कालनेमि के परिणाम का ध्यान करें। हिन्दी साहित्य के मंच पर महावीरों की न्यूनता नहीं है ऐसी पटकनी लगेगी कि अपना अस्तित्व ढूँढ़ते रह जाओगे।

गुरुवार, 13 अक्टूबर 2022

चन्द्र

एक चन्द्र नभ राजे, दूजो चन्द्र मुख चन्द्र,
तीजो चन्द्र माँगबेंदी माथ पे दिखानो है।
चौथो चन्द्र पतिदेव सामने जो दीख गए,
करवा में चार चन्द्र मन अनुमानो है।
कौन वालो चन्द्र तुम्हें पूजनो है चन्द्रमुखे!
बार बार यही प्रश्न चित्त उमड़ानो है।
सरल सुभाय किन्तु वाणी में वणिक सी,
बोल पड़ी भानुमती, राज ही छिपानो है।।

साथ ही जिन क्षेत्रों में चन्द्रमा आज दिखाई नहीं पड़ रहा है, उस क्षेत्र की बहनों के लिए अतिरिक्त पंक्ति

रूप लखि चन्द्रमुखिन चन्द्रमा लजाइ के,
सामने न आवे मेघ मध्य जा लुकानो है।।

सोमवार, 10 अक्टूबर 2022

हे राम तनिक तो दया करो

यूँ तो बारिश का सीजन समाप्त हो चुका है| कार्तिक मास लग गया है किन्तु इन्द्रदेव आषाढ़ मास की तरह मेघों को बरसने का आदेश दे रहे हैं और मेघ उनकी आज्ञा का पालन कर रहे हैं| इसे देखकर यह प्रतीत होता है उनका टाइमटेबल गड़बड़ा गया है| 
ऐसे में बाढ़ की विभीषिका का एक चित्र जो 2003 में मेरे द्वारा खींचा गया था पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है| पूर्णतया काल्पनिक किन्तु अनुभूत|

सितम्बर २००३
बादल पर बादल के पहाड़ घन घुमड़ घुमड़ करते दहाड़।
चपला चमके चम चम चम चम पानी बरसे झम झम झम झम।
तालों ने पीना दिया छोड़ सड़कों पर पानी रहा दौड़।
गलियाँ हैं कीचड़ से लथपथ कच्चे मकान गिरते धप धप।
पशुओं ने की है कौन खता कीचड़, मच्छर हैं रहे सता।
छाया का सिर पर नाम नहीं क्या इनका कोई राम नहीं।
चारे की कमी बहुत भारी सड़ गयी भुसे की बक्खारी।
घासें सब पानी के भीतर हैं लड़ा रहीं अपने तीतर।
भूख सताती है पेटों को नींद आती है लेटों को।
जाने कब धन्नी शीश पड़े दीवाल में दबकर साँस उड़े।
घर छोड़ बने बंजारे हैं सड़कों पर तम्बू डारे हैं।
कीचड़ मे धँसी हुई खटिया ऊपर से रोती है बिटिया।
"हम बासी रोटी ना खैबो यहि पन्नी में अब ना रहिबो।
यह टपक रही है टप टप टप टप हर ओर यहाँ है चप चप चप चप।
चूल्हे की राखी गीली है माचिस की भीगी तीली है।
पानी से तर लकड़ी कन्डे जलते नहीं फूस सरकन्डे।
ऐसे में कैसा खान-पान कैसी कुल्ला कैसा नहान।
कैसी पूजा कैसा विधान हर ओर आदमी परेशान।
पानी में बद्धी बही जाई तरिया कीचड़ में रही जाई।
चप्पल चोटी को नाप रही कपड़ों पर बिन्दी छाप रही।
पानी मे सड़ी अँगुरियाँ हैं दूषित भोजन की थरियाँ हैं।
सब बीमारी से परेशान खेतों में लौटे पड़े धान।
उरदी को भँगरी खाती है मकई चिड़िया चुग जाती है।
घर में बिल्कुल ना है अनाज ऊपर से ठप है कामकाज।
कुत्ता कुकुहाइ रहा कोने अगले पल जाने क्या होने।
ऊँची जगहों का यह वर्णन नीची जगहों पर अति क्रन्दन।
छत पर तक जहाँ निबाह नहीं बिन नाव नवैया राह नहीं।
कोई के लड़िका चारि बहे कोई के बप्पा नहीं रहे।
अम्मा पर गिर गयी है दिवाल मिल जाये लाश है क्या सवाल।
पानी है वहाँ बहुत गहरा ऊपर से जोंकों का पहरा।
बिटिया जो घर से बिछड़ गयी परिवार  मिले उम्मीद नहीं।
बर्तन भाँड़ा रूपया पैसा कुत्ता बकरी भूसा भैंसा।
सब सौ फिट गहरे पानी में जो पैदा किया जवानी में।
पेड़ो की पुलँगी पर बन्दर जैसे लटके हैं नारी नर।
सब सोंच रहे अपने अन्दर पानी कब घटिहै बसिहै घर।
हे राम तनिक तो दया करो गलती सबकी सब क्षमा करो।
अब बहुत बरसि भये बन्द करो पूरो प्रकृति को छन्द करो।


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रविवार, 9 अक्टूबर 2022

सूर्य महिमा

रस 
रवि के हयों की पदचाप सुने रजनी डग डाल गई मग मेंं।
निंदिया निशि के सँग भाग चली तम छोड़ रहा उजले जग में।
नवजीवन सिक्त हुई धरणी रस फैल गया पशु में खग में।
अब भी मन फूर्त नहीं जिसके गिन लो उस मानव को नग मेंं।।
सूर्य महिमा
नभ मस्तक सूर्य सुशोभित हो निज पन्थ प्रकाश प्रसार करा।
क्षण एक कहीं ठहराव नहीं अविराम निकाम प्रचार करा।
समदृष्टि रखे सबमें सबको निज रश्मि-समूह प्रवार* करा।
नित दान करे बस दान करे कुछ माँग नहीं न प्रहार करा।।
* आच्छादन, ढकना 

शनिवार, 8 अक्टूबर 2022

भूला हुआ गुलाब


भूला हुआ गुलाब है अपने रुआब को।
गुड़हल चुरा चुके हैं रंग-ए-गुलाब को।।
जल्दी निकल गये सब साकी के मुँहलगे,
हम तो सुबह गये ले सारे हिसाब को।।
मन में बसी हुई है सूरत बहिश्त की,
मैं क्या करूँ उठाकर तेरे हिजाब को।।
हमने तो अपनी घिस घिस खुशबू बिखेर दी,
रख ले बचाके तू ही अपने शबाब को।।
या तो बढ़ा न मुझसे कोई भी राब्ता,
या फिर किनारे रख दे अपने नकाब को।।
यूँ तो कई जवाब हैं हर एक सवाल के,
देता 'विमल' हमेशा उत्तम जवाब को।।

गुरुवार, 29 सितंबर 2022

जय हे! माते!


जय हे! जय हे! जय हे! माते!
इस भक्त का मान बनाए रखो!
संसार भले विस्मृत होये,
निज चरणों का ज्ञान बनाए रखो।।
झोली फैला क्या माँगूँ मैं,
इस शीष पे हाथ बनाए रखो।
तुम मातु सी मातु हो जग जाने,
इस पुत्र से साथ बनाए रखो।।
सम्पत्ति मुझे जो दी माते!
उसको सम्पूर्ण बनाए रखो।
निष्क्रिय होकर रुक जाऊँ नहीं,
इतना आघूर्ण बनाए रखो।।
तुम संग रहो इस बालक के,
नित बाल स्वभाव बनाए रखो।
जिह्वा रटती रहे माँ, माँ, माँ,
उर में एक घाव बनाए रखो।।

रविवार, 18 सितंबर 2022

सम्मान

सम्मान ओढेंगे या बिछायेंगे,
कमरे की दीवार पर सजायेंगे।
खूँटी पर टाँग लेना है या,
हुक्के में भर गुड़गुड़ायेंगे।
बतायें तो सही पाँच हजार में,
कैसा साहित्यिक सम्मान चाहेंगे।
आपके खास आर्डर पर वैसा ही,
सम्मान फैक्ट्री में तैयार करवायेंगे।
आप चाहें तो रेडीमेड भी मिलेगा,
कुछ खर्च भी कम लगेगा
किन्तु शर्त है 
मंच से उतरने के वापस लिया जाएगा,
और दो घंटे बाद 
किसी और को दिया जाएगा।
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अपने एक कवि मित्र की सम्मान के लिए डिमांड पर सम्मान सहित अ-कविता
विमल 9198907871

तू कहे तो चलूँ

मेरा चलना ठहरना तुम्हारी खुशी।।
तू कहे तो रुकूँ तू कहे तू चलूँ।
प्रेम के पन्थ में स्वत्व होता नहीं,
जिस तरह से उदधि में उतरती नदी।
शैल पर जो खड़े शैल से जो जड़े,
भाग्य में नेह की लिपि छपी ही नहीं।
मोम जैसा बनूँ ताप तो मिल सके।
तू कहे तो तरल बूँद बन बन गलूँ।।1।।
तू कहे तो रुकूँ तू कहे तू चलूँ।
मेघ की यह नियति है पवन सँग बहे,
चन्द्र कब नभ सजे चन्द्रिका के बिना,
ज्योति होगी तभी तो प्रभा राजती,
तट बिना सरि कहाँ ध्यान में आयेगी।
नेह की डोर पर तू नटी सी चले,
मैं भी नट की तरह झूम लूँ नाच लूँ।।2।।
तू कहे तो रुकूँ तू कहे तू चलूँ।
अब न पतझड़ के दिन हैं न ऋतु ग्रीष्म की,
शीत की रात बीते समय हो गया,
याद में ही बची बूँद बरसात की,
है बसंती सुबह की पवन मोदमय।
तुझमें हो यदि हुनर अंक में आ उतर,
तू भ्रमर हो सके पुष्प हो मैं खिलूँ।।3।।
तू कहे तो रुकूँ तू कहे तू चलूँ।

शनिवार, 17 सितंबर 2022

नुस्खा यही अभेद्य

पत्नी से परेशान लोगों के लिए
कुण्डलिया
पत्नी की पूजा करो, अर्प धूप नैवेद्य।
पद छू दिन प्रारम्भ हो, नुस्खा यही अभेद्य।
नुस्खा यही अभेद्य, पूजिये पत्नी मैया।
जो दिखती है भैंस, दिखेगी तुमको गैया।
नजर कीजिये बन्द, तिजोरी खोलो अपनी।
देगी सब वरदान, माँग भर तेरी पत्नी।।
विमल 9198907871

रविवार, 11 सितंबर 2022

शुभे

कुण्डल कानों पर छजे, छजे नाक नकबिन्दु।
बिंदिया मस्तक-मध्य में, रचे इन्दु पर इन्दु।
रचे इन्दु पर इन्दु, मेघ बन लहरें कुन्तल।
दो अधरों के मध्य, दंत एल ई डी चंचल।
शुभे! तुम्हारी श्वास, सुवासित दश दिशि मण्डल।
चुम्बन लेता नित्य, अगर मैं होता कुण्डल।।

शनिवार, 3 सितंबर 2022

गुलाब जल

पापा मम्मी का दुलार भरा हाथ शीश रहे,
आसमां में छेद करो छेद हो ही जाता है।
बीबी और बच्चों की रेड पड़ जाती है जब,
कालाधन सिर पर सफेद हो ही जाता है।
प्रेमिका प्रपंच में जो पड़ गए आप बन्धु,
तन का गुलाब जल स्वेद हो ही जाता है।
कली जो बसंत छोड़ दिन निपटाय रहीं,
बाबा कह जाती हैं तो खेद हो ही जाता है।

सोमवार, 15 अगस्त 2022

आजादी का अमृत महोत्सव

आजादी का अमृत महोत्सव, घर घर अलख जगायेगा।
बच्चा बच्चा थाम तिरंगा, अम्बर तक लहरायेगा।।
इंसानों ने इंसानों को जब इंसान समझना छोड़ा।
दुश्मन कोई भी हो तोपों का मुँह उसने हम पर मोड़ा।
कोई भी भारत में अब से, नहीं भूल दुहरायेगा।।1।।
जातिधर्म की लाठी लेकर, युगों युगों सिर फोड़ चुके हैं।
फाँस तरक्की के पहिए को, रूढ़िवाद में रहे रुके हैं।
नवयुग में नव संकल्पों संग, जनगण कदम बढ़ायेगा।।2।।
अन्दर-बाहर जहाँ कहीं भी, षड्यंत्रों के चक्र चल रहे।
एक-एक कुचले जायेंगे, आस्तीनों में सर्प पल रहे।
सहनशीलता-संयम सरगम, कौन कहाँ तक गायेगा।।3।।
गर्द छा गई है संस्कृति पर, धूमिल सदाचार के मोती।
कुत्तों जैसे झगड़ रहे हम, भारत माता अब तक रोती।
भेद भूलकर मनुज आज से, भारतीय बन पायेगा।।4।।

शनिवार, 18 जून 2022

उल्लूपने का काम

उपद्रवियों से विनम्र निवेदन है कि राष्ट्रहित में राष्ट्रीय सम्पत्ति को हानि पहुँचाना बंद करें। आपकी पीड़ा शायद मेरी भी हो। किन्तु लोकतंत्र में विरोध का यह तरीका बिल्कुल भी जायज नहीं है। सरकार की नीतियों से असहमति अपनी जगह और उसके लिए तोड़फोड़ अपनी जगह। 
सरकार ने तो बिना विचारे काम करने की हठ पकड़ ली है। पहले नोटबंदी, फिर सी ए ए, फिर किसानों के लिए कानून और अब अग्निवीर योजना। किस-किस बात के लिए तोड़ फोड़ करोगे। आप किसी योजना से असहमत हैं तो आपके पास शान्तिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार है या चुनाव में आपके पास मौका होता है कि आप सरकार को उसकी औकात बता सकें। 
समस्या यह भी है कि शान्तिपूर्ण प्रदर्शन की भाषा वो सरकार कैसे समझे जिसकी आईटी सेल लगातार प्रचारित कर रही है कि गाँधी की शान्ति और अहिंसा छलावा थी। अंग्रेज देश छोड़ कर इसलिए गए क्योंकि हिंसक आन्दोलन उस काल में हुए। अंग्रेजों की दृष्टि में जो उग्रवादी थे वे इस सरकार के समर्थकों की दृष्टि में सबसे बड़े देशभक्त थे और गाँधी दोगले। तो भैया जैसा बोओगे वैसा काटोगे यह जग की रीति है। एक ओर सरकार व उसके समर्थक उग्रवाद को महिमामंडित करें और दूसरी ओर तोड़ फोड़ करने वालों की निन्दा ये दोनों बातें एक साथ कैसे हो सकती हैं।
तो भैया चुनाव तक इन्तजार करो और तोड़ फोड़ बन्द करो।
सरकार के लिए भी यह आत्मावलोकन का अवसर है कि लम्बे समय तक आप जनता को बेवकूफ नहीं बना सकते। जनता में लोकप्रियता हासिल कर लेना और जनहित के फैसले लेना दो अलग अलग बातें हैं। जनता प्रायः छल को समझ नहीं पाती और जब तक समझती है तब तक देर हो चुकी होती है। इस सरकार और वर्तमान जन के मध्य भी यही है। 
सरकार कुछ भी कहे कि वह कानूनी प्रक्रिया का पालन करेगी किन्तु करते समय वह पक्षपात अवश्य करेगी। हर जगह वह बुलडोजर का प्रयोग नहीं कर सकती। हर जगह बुलडोजर सफल भी नहीं हो सकता यह बात मेरे जैसे दो चार गाँधी समर्थक ही जानते हैं। 
लोकतंत्र में बहुमत की चलती है और यही लोकतंत्र का गुण भी है और अवगुण भी। गुण और अवगुण के मध्य बहुत बारीक विभाजक रेखा है। उसे देखने के लिए बहुत बारीक बुद्धि भी चाहिए। बुद्धि के सन्दर्भ में जार्ज बर्नाड शॉ के पात्र ब्लंटशली ने रैना से कहा, "नाइन सोल्जर्स आउट ऑफ टेन आर बॉर्न फूल्स।"
दुर्भाग्य से इस समय विवाद भी सोल्जर्स के सन्दर्भ में ही है। लेकिन मैं इस कथन को सम्पूर्ण समाज पर लागू कर जब लोकतंत्र के परिप्रेक्ष्य में देखता हूँ तो यही लोकतंत्र का सबसे बड़ा अवगुण है। बहुत बार नौ लोगों ने उल्लूपने का काम किया है और आगे भी करते रहेंगे।

सोमवार, 13 जून 2022

लाजवाबी

गुलब्बो कहाँ तक गुलाबी रहेगी,
नजर से कहाँ तक शराबी रहेगी,
मगर नेह की अग्नि उर से उठी है,
जहाँ तक रहे लाजवाबी रहेगी।।1।।
गला ढल गया गुम हुआ है तरन्नुम,
अभी इल्तिजा गर मिले वो तबस्सुम, 
गुलब्बो समाँँ बाँध देगी जहाँ में, 
बना देगी जन्नत मिले जो जहन्नुम।।2।।
नोट-गुलब्बो प्रायः मेरी कविताओं का ऐसा काल्पनिक पात्र है जिसे मैं प्रेम करता हूँ।

शुक्रवार, 10 जून 2022

चित्रमाला

ये जो हँसते-मुस्कुराते हुए एकदूसरे के कँधे पर हाथ रखकर, गोद में उठाकर या आलिंगनबद्ध होकर बीसियों तरह की मुद्राओं से युक्त चित्रमाला सोशल मीडिया पर लगाई है सच बताना इस प्रेम में कितनी सच्चाई है। प्रश्न ये भी है कि विवशताओं के मध्य यह फिल्मी अदाकारी कहाँ से आई है। तुम्हारे अधरों की भंगिमा लिखे गए शब्दों का साथ नहीं देती, नयन तो किसी स्वर्णमृग या स्वर्णमृगी के पीछे गए हुए लगते हैं। कभी कभी ऐसा भी प्रतीत होता है कि चिपका दिए गए हो काटकर पास-पास। 
ये जो पग पग पर साथ देनेवाली बात लिख देते हो इसमें कितनी सच्चाई है। सच बताना किसके दबाव में ये बयान चिपका देते हो। मिसेज के साथ फोटो मजबूरी है। प्रेस्टीज का सवाल है बाबा। न कहीं काशी न कहीं काबा। मगर विशेषण बाबू, बेबी, सोना और बाबा। कभी किच किच नहीं होती? कितने नीरस हो? या सच कह नहीं सकते बेबस हो। 

गुरुवार, 9 जून 2022

बेटा बहू


जिनके हित में बंजर कर दी अपनी हरी बहार में,
बेटे बहू नहीं आते हैं अब घर पर त्यौहार में।।
अपनी अपनी ध्वजा उठाए सब विकास की चाह रहे,
रोजीरोटी का रण लड़ते देख विजय की राह रहे।
कुछ तो खोए हुए तरक्की की सतरंग मल्हार में।।
बाहर बेटा गया अकेला दो होकर अब रहता है,
लेकर बहू आ रहा घर पर हर महिने ही कहता है,
आँखें उलझी हुई प्रतीक्षारूपी काँस-सिवार में।।
बेटे के सिर सेहरा देखें मन की चाह मरी मन में,
कभी नहीं जानी है मस्ती पोती-पोतों के धन में,
सिसक सिसक कर कटे जिंदगी जीवन की पतझार में।।

सोमवार, 6 जून 2022

छप्पन इंची गुब्बारा

2014 में गुब्बारे का साइज 56 इंच था। जनभावनाओं के सहारे उड़ा तो उड़ता गया। भूल गया कि हर उड़ान की सीमा है। जमीन और आसमान के तापमान और दशाओं में फर्क होता है। उड़ने की स्वतंत्रता में संविधान का बंधन है। अब संविधान के अनुच्छेदों में छेद ढूँढ़ कर बढ़ना सरल रहा तो बढ़ लिये। लेकिन धर्म व जाति ऐसा भावनात्मक बिन्दु है जिस पर भारत जैसे बहुलतावादी देश में खड़े होकर कला करना बहुत मुश्किल है। 
किसानों का विरोध करते करते इस गुब्बारे में हवा भरनेवालों ने सोये हुए खालिस्तानियों को भी तमाशा देखने के लिए बुला लिया। मैं इसे आन्तरिक कूटनीतिक असफलता मानता हूँ। 
पुनश्च मुस्लिमों व कश्मीर का मसला ऐसा है जो एक दूसरे से अलग होते हुए भी एक दूसरे में गुंथे हैं। इस मसले से ऐसा समूह जुड़ा है जिसकी आँखों पर आसमानी किताब का वो नूर है जिसमें तर्क की रोशनाई नहीं होती। जिसके लिए छठवीं शताब्दी और बाइसवीं शताब्दी के समाज में कोई अन्तर नहीं है। इसने इतनी सामान्य बात नहीं समझी संसार में सब कुछ परिवर्तनशील है। इसने यह नहीं सीखा कि जो परिवर्तित न होंगे तो नष्ट हो जाएंगे। 
इस वर्ग के अन्दर ही कुछ लोग जिन्होंने परिवर्तनों को स्वीकारा भी उनका भी व्यवहार दोगला है। बस एक उदाहरण पर्याप्त है कि संगीत इस्लाम विरोधी है लेकिन किसी की शादी में जाकर बाजा बजाना बिल्कुल भी इस्लाम विरोधी नहीं है।
जो भी हो मेरा इस्लाम और इस्लामिकों से कोई लेना देना नहीं है। उन्हें अपना आचार विचार मुबारक। 
मैं तो गुब्बारे की चर्चा कर रहा था। गुब्बारे में हवा भरनेवालों ने  अयोध्या की हरित भूमि से अपने गुब्बारे को पार कराया तो गुब्बारे में पंख लग गए। एक तो छप्पन इंच दूसरे पंख चढ़ा। मथुरा व काशी की सैर पर भी निकल पड़ा। कुछ तमाशाई जोश में आकर गुब्बारे को पूरे देश की सैर कराने पर आवाज लगाने लगे। बड़ी विवशता में या सदाशयता भी हो सकती है कि आर एस एस के मुखिया को कहना पड़ा कि काशी की तरह का अभियान प्रत्येक बिल्डिंग के लिए नहीं चलाया जाएगा। अच्छा है। 
कश्मीर में या विश्व में अन्यत्र जब कोई आतंकी घटना होती है तो जैसे यह वर्ग देश में या विश्व में रहता नहीं या अन्धा बहरा है लेकिन जैसे ही किसी आतंकी की गर्दन पर लात रखी जाती है तो पेट वाले भी पत्थर टटोलने लगते हैं। जब तक यह वर्ग अपनी भेदभाव वाली मानसिकता से बाहर नहीं आएगा यह संघर्ष अनवरत जारी रहेगा। 
अब फिर गुब्बारे पर आते हैं। गुब्बारा जब बहुत ऊँचाई पर पर पहुँचा तो जोशीले दर्शकों से उसकी दूरी बढ़ गई। शायद एक दूसरे का तालमेल भी टूटा। दर्शकों तक गुब्बारे की प्रतिक्रिया शायद नहीं पहुँच रही या दर्शक गुब्बारे की गति से कोई सबक नहीं लेना चाहते। दर्शक यह भी नहीं समझ पा रहे कि समय के साथ गुब्बारे की दीवारों से वायु विसरित हो जाती है और गुब्बारा नम्र हो जाता है। गुब्बारे का साइज भी कम हो जाता है। 
दर्शकों की समस्या यह है कि उनकी बुद्धि तेज हो गई है कि वे पीछे रह गए और बुद्धि आगे निकल गई। वे भूल जाते हैं कि वे उस शत्रु को कभी समाप्त नहीं कर सकते जिसकी मनोवृत्ति नहीं परिवर्तित कर सकते। शत्रु को समाप्त करना है तो मनोवृत्ति को परिवर्तित करें। लेकिन हवाभरने वाले स्वयं स्वीकारते हैं कि जल को रंगीन बना सकते हैं कीचड़ को नहीं।तो भैया कीचड़ में लोट लगाना बंद करें। गुब्बारे को सही दिशा में उड़ने के लिए प्रेरित करें। गुब्बारे को भी सोचना पड़ेगा जहाँ दस इंच की जगह हो वहाँ से छप्पन इंच नहीं गुजर सकता। हवा भरनेवाले गुब्बारे का साइज कम होते नहीं देखना चाहते यद्यपि साइज कम होना नियति है। 

रविवार, 5 जून 2022

नया व्यवसाय

आजकल पकड़ा हुआ मैंने नया व्यवसाय है।
शव पुराने खोदता या संग रहती गाय है।।
पात्र अपने मन मुताबिक चुन लिए इतिहास से,
कींच में डाला किसी को रंग दिया उजियास से।।
चोंच लड़तीं जा रहीं हैं गीत सबके ही मधुर।
रँग बिरंगी हर किसी की टोपियाँ हैं उच्चतर।।
शीश नंगा ले फिरूँ अपनी प्रकृति में है नहीं।
गूँथ कर उद्दण्डता सिर पर उठाये हूँ मही।।
हाकिमों ने भय बनाया है सभी के हृदय में।
आग का मैं भी खिलाड़ी नित्य रहता प्रलय में।।
ध्वंस से सम्बन्ध तोड़े मैं सृजक हूँ सृष्टि का।
यत्न करता हूँ कि कृति में भाव हो उत्कृष्टि का।।

शनिवार, 4 जून 2022

रखवाला

अपना तो हर काम निराला होता है।
जब आँखें हों बन्द उजाला होता है।।
घर खाली है इतने भ्रम में मत रहना,
प्रायः मेन गेट पर ताला होता है।।
जो भी जाति नहीं लड़ पाती अपना रण।
उसका लिखा पढ़ा सब काला होता है।।
अपने तन मन में लड़ने का जोश न हो।
साथ न कोई देनेवाला होता है।।
यदि वैरी का शीष काटना ठन जाए।
हाथ खड्ग उर मध्य शिवाला होता है।।
घर को छोड़ भागते फिरने वालों का,
कहीं नहीं कोई रखवाला होता है।।

शुक्रवार, 3 जून 2022

खुद से शादी

स्वयं से प्रेम तो बहुत से मनुष्य करते हैं, मैं भी करता हूँ। किन्तु विवाह तो किसी अन्य से ही किया है। विवाह का उद्देश्य प्रेम होता है पहली बार पता चला। हमारी सनातन परंपरा में तो दो अनजाने लोग विवाह करते रहे हैं बच्चे पैदा करते रहे हैं परिवार का विस्तार करते रहे हैं। उनमें कभी प्रेम हुआ तो ठीक नहीं हुआ तो ठीक। मेरे अपने विवाह को 26 वर्ष हो गए। मैं अपनी पत्नी से प्रेम करता हूँ निश्चय करके नहीं कह सकता। पत्नी को छोड़िये मेरे जानने वालों को कोई यह बता दे कि विमल कुमार शुक्ल को किसी से प्रेम भी है तो विश्वास नहीं करेंगे। 
विवाह का कारण प्रेम है तो यह भी आवश्यक नहीं। हमारे समाज में तमाम लोग हैं परस्पर प्रेम करके जीवन बिता देंगे पर विवाह नहीं करेंगे। विवाह किसी और से प्रेम किसी और से यह भी चलता है। 
फिल्म वालों ने लैला मजनूँ और शीरी फरहाद से टपोरियों को दिमाग में इस तरह भर दिया है कि अब प्रेम पहले फिर शादी और कभी कभी शादी से पहले ही ब्रेकअप। 
मैं कुछ लोगों को जानता हूँ जो विवाह करके अपना घर तो बसा  नहीं पाये हाँ प्रेम के चक्कर में दूसरे का तोड़ जरूर दिया। ऐसे लोग भी समाज में हैं विवाह नहीं करेंगे लेकिन हर फूल का आस्वाद ग्रहण करने के चक्कर में रहेंगे। एक उम्र पर जब स्थायित्व चाहेंगे तो फूलों के द्वारा स्वतः फेंक दिए जायेंगे। 
खैर आप विवाह करें न करें। आपकी इच्छा। संविधान अनुमति देता है। किन्तु बायोलॉजी का क्या? बायोलॉजी सभी सजीवों में (पेड़ पौधों सहित) अपनी सृष्टि विस्तार के लिए लैंगिक व अलैंगिक दो प्रकार के साधनों को इंगित करती है। लैंगिक व अलैंगिक जनन करनेवाले प्राणियों की पृथक पृथक विशेषताएं होती हैं। स्पष्टतः मनुष्य लैंगिक प्राणी है। जैसे ही बालक बालिकाएं किशोरावस्था में पहुँचते हैं विपरीत लिंगियों में आकर्षण बढ़ जाता है। इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है। हाँ हमारी सामाजिक परम्पराओं व मान्यताओं के कारण हम लड़के लड़कियों के स्वतंत्र मेलजोल को अनैतिक मानते रहे हैं। 
इस अनैतिकता को नैतिकता का स्वरूप प्रदान करने के लिए ही विवाह को स्वीकारा गया है। दूसरे आयुर्वेद के जानने वाले जानते है कि शरीर के चौदह वेग भूख, प्यास, खाँसी, श्वास, जम्भाई आदि में एक वेग यौनेच्छा का भी है। इन सारे वेगों को रोकने से शरीर विकारग्रस्त हो जाता है। विवाह मनुष्य की यौन इच्छाओं की तृप्ति का साधन भी है। भौतिकी में भी न तो धनावेश-धनावेश आकर्षित होते हैं और न ऋणावेश-ऋणावेश। ये सदैव प्रतिकर्षित ही करते हैं। कार्यफलन के लिए धनावेश व ऋणावेश का संगम आवश्यक है। इसी प्रकार चुम्बक में ध्रुवों का व्यवहार भी होता है। उत्तर-उत्तर व दक्षिण-दक्षिण ध्रुव कभी नहीं मिलते। एकल ध्रुवीय चुम्बक का तो अस्तित्व ही नहीं होता। 
ठीक इसी प्रकार आप सनकी या महामानव हो सकते हैं किन्तु परिवार नहीं हो सकते। परिवार के लिए धनावेश-ऋणावेश, उत्तर ध्रुव-दक्षिण ध्रुव जैसे ही स्त्री-पुरूष तथा प्रेम और घृणा दोनों की ही आवश्यकता होती है। 
यह सम्भव है कि आपको अपने मनोनुकूल साथी मिलने में समय लगे इसके लिए ईश्वर से प्रार्थना करें किन्तु मिलेगा अवश्य। न मिले फिर दूसरे को अपने मनोनुकूल बना लें। सबसे सरल है स्वयं दूसरे के मनोनुकूल बन जाएं। प्रेमी का यह भी एक स्वरूप होता है और सर्वोत्तम स्वरूप है कि हम वह बनें जो हमारा प्रेमी/प्रेमिका चाहता है/चाहती है। मार्ग अनन्त हैं हठ छोड़ कर देखें।
संक्षेपतः विवाह एक आवश्यक व नैतिक शर्त है, आप करें न करें आपकी मर्जी, किन्तु उपयुक्त अवस्था प्राप्त कर, पूर्ण स्वस्थ होकर भी विवाह नहीं करते तो आप मनोविकारी हैं हाँ सन्यासी हो जाएं अलग बात है। तो मेरा सुझाव है यदि आपकी उम्र हो गई है नैसर्गिकता का आनन्द लें विवाह करें और वैवाहिक धर्म का पालन करें। जिस प्रकार मार्ग सदैव समतल नहीं होता उसी प्रकार जीवन भी समतल नहीं होता। पर्वतारोहण से घबरायें नहीं।

मंगलवार, 31 मई 2022

हिन्दी मात्रा प्रयोग

बिन मात्रा के अजगर, अदरक, कटहल, शलजम, कलम।
हलचल, बरतन, खटपट, सरपट, टमटम, कलकल, जलम।।1।।
आ से आम, आग में भूना, खट्टा मीठा स्वाद।
खाना-दाना पेड़ दे रहा, खुद खाता है खाद।।2।।
किरन किशन से झगड़ा करती, बिना बात की बात।
इमली तो इठलाती फिरती, इतराती इफरात।।3।।
ईश्वर का ईनाम सभी कुछ, मीठा, तीखा, फीक।
खीर, खरी, खीरा, ककड़ी की, बात बड़ी बारीक।।4।।
उड़द, उड़ीसा, उबटन, उपला, उधम अउर उत्पात।
सुघड़, माधुरी, सुन्दर, युवती, फुलवारी, पुलकात।।5।।
सूटर पहने फुल्लू  फूले, ऊटपटाँगा ऊन।
ऊँट पूँछ कूबड़ को भूला, धाँसू देहरादून।।6।।
ऋषि के गृह मृग-मृगी टहलते, मृगतृष्णा से दूर।
कृषक, कृष्ण, कृषि, कृपा, गृहस्थी, घृत अमृत भरपूर।।7।।
एक अनेक नेक क्यों चरचे, बाँचे लेख अनन्त।
साँचे राँचे प्रेम नेम में, राधे रटते संत।।8।।
ऐरावत ने ऐनक पहनी, भैया है हैरान।
गैया-भैंस न शैय्या छोड़े, हो गये हैं शैतान।।9।।
ओंकार को रोज भजो जो, बोलो हरिहरिओम।
रोग, शोक, मद, मोह, छोड़कर, घूमो धरती-व्योम।।10।।
औरत, औषधि, मौसी, भौजी, लौकी, नौका, चौक।
गौरव, रौनक, रौशन, यौवन, दौलत, लौटा, शौक।।11।।
नग को नंग बना देती है, जग में करती जंग।
अं की बिन्दी का कमाल है, रग में भरती रंग।।12।।
अः की बात निराली कितनी, मजेदार निशि-अहः।
छः दिन कर्म रविः विश्रामः, सुखपूर्णः मम मनः।।13।।

मंगलवार, 24 मई 2022

जुआ वैध या अवैध

मैं अपने सुधी पाठकों से यह जानना चाहता हूँ कि क्या देश में जुआ खेलना वैध है अथवा अवैध। या फिर वैध और अवैध जुए के मध्य कोई विभाजक रेखा है? 
हमारे समाज में जुए का इतिहास बड़ा पुराना है।  महाभारत काल से भी पुराना। राजा नल अपना सबकुछ जुए में हार गए थे यह युधिष्ठिर से बहुत पहले की कहानी है। मेरा जिस जुए से प्रथम बार परिचय हुआ वह शायद गाँव में गोली-कंचों का अथवा पैसों का रहा। लोगों को खेलते देखा बस कभी कभार खुद भी खेला होगा कुछ याद नहीं। इस संदर्भ में मेरे पिता जी अति कठोर थे। फिर लोगों को ताश खेलते देखा किन्तु खेला कभी नहीं इतना स्पष्ट है। उन दिनों कभी कभी पुलिस जुआरियों के विरुद्ध कार्यवाही कर देती थी। फिर दौर आया लॉटरी का। सबसे अधिक परिष्कृत और सरकार के द्वारा संचालित। लाखों परिवार विनष्ट हो गए लॉटरी के चक्कर में।अन्ततः सरकार ने बन्द करा दिया। यद्यपि लॉटरी दो चार बार लेखक ने भी खरीदी।
लॉटरी बन्द हुई तो सट्टा शुरू हो गया। अभी चल रहा है। जब तब कार्यवाही भी होती है किन्तु परिणाम शून्य। अब तो सट्टा अन्तर्राष्ट्रीय हो गया है।
कुछ समय से जुए का नया स्वरूप आया है। इन्टरनेट पर ऐप डाउनलोड करो। खेलो जीतो और खाते में ट्रांसफर करो। विज्ञापन भी इसका जबरदस्त। "हैलो दोस्तों यह कार मैंने लूडो खेलकर जीती है। तुम भी जीत सकते हो। ऐप डाउनलोड करो। साइट का पता है कखग.com।"
फिर एक्सप्रेस की स्पीड से चेतावनी, "कृपया 18 वर्ष से ऊपर के लोगों के लिए। वित्तीय जोखिम की संभावना शामिल। अपनी जिम्मेदारी और जोखिम पर खेलें। इसकी लत लग सकती है।" बहुत बार क्या कहा जा रहा है समझ नहीं आता।
मेरा प्रश्न यही है कि इस प्रकार का जुआ यदि ऑनलाइन सही है तो ऑफलाइन गलत किस प्रकार से है। यदि दोनों सही हैं तो एक पीछे पुलिस दौड़ती है और दूसरे कमरों में बैठ कर जुआ खेलते रहे हैं यह बिल्कुल उचित नहीं। यदि दोनों गलत हैं तो सरकार को चाहिए कि अविलम्ब ऐसे जुए और साइटों को बंद करें जो युवा शक्ति को अनुत्पादक व हानिकारक व्यवसायों के लिए प्रेरित कर रही हैं।
मैं समझता हूँ कि वकील लोग जो अनाप शनाप मामले ले जाकर कोर्ट में बदनामी झेलते हैं वे इस मुद्दे पर कुछ सार्थक करके सम्मान अर्जित कर सकते हैं। सरकार में बैठे लोगों का भी यह दायित्व है कि युवा पीढ़ी को अंधकार के गर्त में जाने से रोके।











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