अपना तो हर काम निराला होता है।
जब आँखें हों बन्द उजाला होता है।।
घर खाली है इतने भ्रम में मत रहना,
प्रायः मेन गेट पर ताला होता है।।
जो भी जाति नहीं लड़ पाती अपना रण।
उसका लिखा पढ़ा सब काला होता है।।
अपने तन मन में लड़ने का जोश न हो।
साथ न कोई देनेवाला होता है।।
यदि वैरी का शीष काटना ठन जाए।
हाथ खड्ग उर मध्य शिवाला होता है।।
घर को छोड़ भागते फिरने वालों का,
कहीं नहीं कोई रखवाला होता है।।
यदि वैरी का शीष काटना ठन जाए।
जवाब देंहटाएंहाथ खड्ग उर मध्य शिवाला होता है।।
क्या बात है विमल जी।वहुत ही अच्छे लिखे आपने सभी बंध 👌👌🙏
हार्दिक आभार बहन🙏🙏
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(६-०६-२०२२ ) को
'समय, तपिश और यह दिवस'(चर्चा अंक- ४४५३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हार्दिक आभार बहन
हटाएंबहुत सुंदर,वाह वाह
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बन्धु
हटाएंसुंदर दुनिया है आपकी
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय
हटाएंबहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बहन
हटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बहन
हटाएं