मैं अपने सुधी पाठकों से यह जानना चाहता हूँ कि क्या देश में जुआ खेलना वैध है अथवा अवैध। या फिर वैध और अवैध जुए के मध्य कोई विभाजक रेखा है?
हमारे समाज में जुए का इतिहास बड़ा पुराना है। महाभारत काल से भी पुराना। राजा नल अपना सबकुछ जुए में हार गए थे यह युधिष्ठिर से बहुत पहले की कहानी है। मेरा जिस जुए से प्रथम बार परिचय हुआ वह शायद गाँव में गोली-कंचों का अथवा पैसों का रहा। लोगों को खेलते देखा बस कभी कभार खुद भी खेला होगा कुछ याद नहीं। इस संदर्भ में मेरे पिता जी अति कठोर थे। फिर लोगों को ताश खेलते देखा किन्तु खेला कभी नहीं इतना स्पष्ट है। उन दिनों कभी कभी पुलिस जुआरियों के विरुद्ध कार्यवाही कर देती थी। फिर दौर आया लॉटरी का। सबसे अधिक परिष्कृत और सरकार के द्वारा संचालित। लाखों परिवार विनष्ट हो गए लॉटरी के चक्कर में।अन्ततः सरकार ने बन्द करा दिया। यद्यपि लॉटरी दो चार बार लेखक ने भी खरीदी।
लॉटरी बन्द हुई तो सट्टा शुरू हो गया। अभी चल रहा है। जब तब कार्यवाही भी होती है किन्तु परिणाम शून्य। अब तो सट्टा अन्तर्राष्ट्रीय हो गया है।
कुछ समय से जुए का नया स्वरूप आया है। इन्टरनेट पर ऐप डाउनलोड करो। खेलो जीतो और खाते में ट्रांसफर करो। विज्ञापन भी इसका जबरदस्त। "हैलो दोस्तों यह कार मैंने लूडो खेलकर जीती है। तुम भी जीत सकते हो। ऐप डाउनलोड करो। साइट का पता है कखग.com।"
फिर एक्सप्रेस की स्पीड से चेतावनी, "कृपया 18 वर्ष से ऊपर के लोगों के लिए। वित्तीय जोखिम की संभावना शामिल। अपनी जिम्मेदारी और जोखिम पर खेलें। इसकी लत लग सकती है।" बहुत बार क्या कहा जा रहा है समझ नहीं आता।
मेरा प्रश्न यही है कि इस प्रकार का जुआ यदि ऑनलाइन सही है तो ऑफलाइन गलत किस प्रकार से है। यदि दोनों सही हैं तो एक पीछे पुलिस दौड़ती है और दूसरे कमरों में बैठ कर जुआ खेलते रहे हैं यह बिल्कुल उचित नहीं। यदि दोनों गलत हैं तो सरकार को चाहिए कि अविलम्ब ऐसे जुए और साइटों को बंद करें जो युवा शक्ति को अनुत्पादक व हानिकारक व्यवसायों के लिए प्रेरित कर रही हैं।
मैं समझता हूँ कि वकील लोग जो अनाप शनाप मामले ले जाकर कोर्ट में बदनामी झेलते हैं वे इस मुद्दे पर कुछ सार्थक करके सम्मान अर्जित कर सकते हैं। सरकार में बैठे लोगों का भी यह दायित्व है कि युवा पीढ़ी को अंधकार के गर्त में जाने से रोके।
बहुत अच्छे विषय की ओर ध्यान दिलाया आपने भाई विमल जी | सच में इन apps के लालच में ना जाने कितने बच्चे और युवा उलझकर अपना धन और समय दोनों नष्ट कर रहे | पर सरकार खुली आँखों से ये बर्बादी के मंजर देख रही है | ना पोर्न सीटें बंद कर पाई है ना ये लुटेरे लालची लोगों के प्रपंच | देश की भावी पीढ़ी का राष्ट्रीय चरित्र धूमिल पड़ रहा है . पर परवाह किसे है | सादर |
जवाब देंहटाएंजी बहन जी, सादर धन्यवाद।
हटाएंवर्तमान परिक्षेत्र महत्वपूर्ण मुद्दे पर आपने अपनी कलम चलाई है आदरणीय सर बहुत ही सटीक और शानदार
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय ब्लॉग पर आकर टिप्पणी करने के लिए।
हटाएंपोस्ट का लिंक शेयर करने के लिए हार्दिक आभार बड़े भाई। नमस्कार
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