फटी हुई जीन्स की आलोचना न करें बन्धु,
हो सके तो सही वेशभूषा को सम्मान दें।
कुतियों के भौंकने पर कान बन्धु देते क्यों,
कोयलों के गुणगान वाला आसमान दें।
कोयले के नाम से काली छवि बने मन,
मन को तो क्षीरसिन्धु का ही ज्ञान-ध्यान दें।
भृष्ट-जन-चिंतन से भृष्टता ही आती तन,
मन में न राम यदि रमा को स्थान दें।।
वाह! बहुत सुंदर संदेश। किन्तु, टिप्पणियों के प्रकाशन की पूर्व मंजूरी का यह टोटका हटाएं। तब प्रशंसक अधिक संख्या में अपनी अभिव्यक्ति देंगे।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बन्धु। टिप्पणी के लिए प्रकाशन मंजूरी जैसा तो मेरे ब्लॉग पर कुछ भी नहीं है। कोई भी टिप्पणी सीधे ही प्रकाशित हो जाती है।
हटाएंबहुत बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बहन।
हटाएंहोली के अवसर पर सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बड़े भाई, नमन।
हटाएंसार्थक संदेश
जवाब देंहटाएंहृदय से धन्यवाद बहन।
हटाएंउम्दा
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार भाई।
हटाएंवाह! बहुत ही बढ़िया सर।
जवाब देंहटाएंसादर
हार्दिक आभार बहन, होलिकोत्सव की शुभकामनाएं
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