मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021

वसंती होलें

मुक्तक

आओ बन्धु वसंती होलें।
उमगें हृदय वचन यों बोलें।
सरसों जैसी सूक्ष्म काय हों,
फिर भी जगत नेह से धोलें।।1।।

शीत गई अब जड़ता छोड़ो।
तन के, मन के बन्धन तोड़ो।
बहुत किया विध्वंस सृजन में,
शक्ति नदी की धारा मोड़ो।।2।।

पग पग प्रकृति प्रफुल्लित पावन।
गाती राग विराग नसावन।
आओ हम भी आलस छोड़ें,
आता पास दिख रहा फागुन।।3।।

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सरस् प्रभावी मुक्तक विमल जी। आपको बसंत पंचमी की हार्दिक बधाई और
    शुभकामनाएं🙏🙏💐💐

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    1. हार्दिक आभार व आपको भी सादर शुभकामनाएं। बहन नमन।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२१-०२-२०२१) को 'दो घरों की चिराग होती हैं बेटियाँ' (चर्चा अंक- ३९८४) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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  3. बस वासंती हो लें । सुंदर प्रस्तुति ।

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  4. सुन्दर भावपूर्ण मुक्तक !!

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  5. सुंदर सृजन,सादर नमन आपको

    जवाब देंहटाएं
  6. शानदार मुक्तक सार्थक सुंदर।
    अप्रतिम सृजन।

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