ये जो हँसते-मुस्कुराते हुए एकदूसरे के कँधे पर हाथ रखकर, गोद में उठाकर या आलिंगनबद्ध होकर बीसियों तरह की मुद्राओं से युक्त चित्रमाला सोशल मीडिया पर लगाई है सच बताना इस प्रेम में कितनी सच्चाई है। प्रश्न ये भी है कि विवशताओं के मध्य यह फिल्मी अदाकारी कहाँ से आई है। तुम्हारे अधरों की भंगिमा लिखे गए शब्दों का साथ नहीं देती, नयन तो किसी स्वर्णमृग या स्वर्णमृगी के पीछे गए हुए लगते हैं। कभी कभी ऐसा भी प्रतीत होता है कि चिपका दिए गए हो काटकर पास-पास।
ये जो पग पग पर साथ देनेवाली बात लिख देते हो इसमें कितनी सच्चाई है। सच बताना किसके दबाव में ये बयान चिपका देते हो। मिसेज के साथ फोटो मजबूरी है। प्रेस्टीज का सवाल है बाबा। न कहीं काशी न कहीं काबा। मगर विशेषण बाबू, बेबी, सोना और बाबा। कभी किच किच नहीं होती? कितने नीरस हो? या सच कह नहीं सकते बेबस हो।
बहुत सटीक प्रश्न करता सृजन ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बहन
हटाएंगहन भाव
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बन्धु
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