आजादी का अमृत महोत्सव, घर घर अलख जगायेगा।
बच्चा बच्चा थाम तिरंगा, अम्बर तक लहरायेगा।।
इंसानों ने इंसानों को जब इंसान समझना छोड़ा।
दुश्मन कोई भी हो तोपों का मुँह उसने हम पर मोड़ा।
कोई भी भारत में अब से, नहीं भूल दुहरायेगा।।1।।
जातिधर्म की लाठी लेकर, युगों युगों सिर फोड़ चुके हैं।
फाँस तरक्की के पहिए को, रूढ़िवाद में रहे रुके हैं।
नवयुग में नव संकल्पों संग, जनगण कदम बढ़ायेगा।।2।।
अन्दर-बाहर जहाँ कहीं भी, षड्यंत्रों के चक्र चल रहे।
एक-एक कुचले जायेंगे, आस्तीनों में सर्प पल रहे।
सहनशीलता-संयम सरगम, कौन कहाँ तक गायेगा।।3।।
गर्द छा गई है संस्कृति पर, धूमिल सदाचार के मोती।
कुत्तों जैसे झगड़ रहे हम, भारत माता अब तक रोती।
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