विषय ---फागुन
विधा ----छंद - कुण्डलिया
1. फागुन आया देखकर आम उठा बौराय।
पिया बसे परदेश में, कोयल रही बुलाय।
कोयल रही बुलाय, धरा है धानी धानी।
मादकता सिर चढ़ी कर रही पानी पानी।
समझ न आवें मित्र! ससुर बहुओं के लच्छन।
मन को दे भरमाय मदन का भाई फागुन।।
2- फागुन चढ़ा मुंडेर पर, घोट रहा है भाँग।
देवर जी का लग रहा, नम्बर हो गया राँग।
नम्बर हो गया राँग, मनाते घूमें भाभी।
हर ताले की पास रखें जो अपने चाभी।
चाहत गोरा होंय माँगते क्रीमें साबुन।
भाभीजी की बहन भा गई अबकी फागुन।।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 05 फरवरी 2023 को साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक आभार बहन
हटाएंबहुत सुंदर। फागुन की तो बात ही अलग है।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय
हटाएंविमल कुमार विमल जी,
जवाब देंहटाएंनमस्ते 🙏❗️
भाभी जी की बहन भा गई अबकी फागुन!
ऐसा सुसंयोग सबों का बना रहे.
बसंतोत्सव की अग्रिम बधाइयां.. ❗️🌹❗️
मेरी आवाज में संगीतबद्ध मेरी रचना 'चंदा रे शीतल रहना' को दिए गए लिंक पर सुनें और वहीं पर अपने विचार भी लिखें. सादर आभार 🌹❗️--ब्रजेन्द्र नाथ
सादर आभार आदरणीय
हटाएंफागुन की आहट सुनाई दे गई !
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बहन
हटाएंमन को गुदगुदा देने वाला बहुत ही सुंदर सृजन!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीया बहन
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