जय हे! जय हे! जय हे! माते!
इस भक्त का मान बनाए रखो!
संसार भले विस्मृत होये,
निज चरणों का ज्ञान बनाए रखो।।
झोली फैला क्या माँगूँ मैं,
इस शीष पे हाथ बनाए रखो।
तुम मातु सी मातु हो जग जाने,
इस पुत्र से साथ बनाए रखो।।
सम्पत्ति मुझे जो दी माते!
उसको सम्पूर्ण बनाए रखो।
निष्क्रिय होकर रुक जाऊँ नहीं,
इतना आघूर्ण बनाए रखो।।
तुम संग रहो इस बालक के,
नित बाल स्वभाव बनाए रखो।
जिह्वा रटती रहे माँ, माँ, माँ,
उर में एक घाव बनाए रखो।।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (01-10-2022) को "भोली कलियों का कोमल मन मुस्काए" (चर्चा-अंक-4569) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार बड़े भाई
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाई
हटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बहन
जवाब देंहटाएंउत्तम सृजन...
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बन्धु
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