आजकल पकड़ा हुआ मैंने नया व्यवसाय है।
शव पुराने खोदता या संग रहती गाय है।।
पात्र अपने मन मुताबिक चुन लिए इतिहास से,
कींच में डाला किसी को रंग दिया उजियास से।।
चोंच लड़तीं जा रहीं हैं गीत सबके ही मधुर।
रँग बिरंगी हर किसी की टोपियाँ हैं उच्चतर।।
शीश नंगा ले फिरूँ अपनी प्रकृति में है नहीं।
गूँथ कर उद्दण्डता सिर पर उठाये हूँ मही।।
हाकिमों ने भय बनाया है सभी के हृदय में।
आग का मैं भी खिलाड़ी नित्य रहता प्रलय में।।
ध्वंस से सम्बन्ध तोड़े मैं सृजक हूँ सृष्टि का।
यत्न करता हूँ कि कृति में भाव हो उत्कृष्टि का।।
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