रविवार, 18 सितंबर 2022

तू कहे तो चलूँ

मेरा चलना ठहरना तुम्हारी खुशी।।
तू कहे तो रुकूँ तू कहे तू चलूँ।
प्रेम के पन्थ में स्वत्व होता नहीं,
जिस तरह से उदधि में उतरती नदी।
शैल पर जो खड़े शैल से जो जड़े,
भाग्य में नेह की लिपि छपी ही नहीं।
मोम जैसा बनूँ ताप तो मिल सके।
तू कहे तो तरल बूँद बन बन गलूँ।।1।।
तू कहे तो रुकूँ तू कहे तू चलूँ।
मेघ की यह नियति है पवन सँग बहे,
चन्द्र कब नभ सजे चन्द्रिका के बिना,
ज्योति होगी तभी तो प्रभा राजती,
तट बिना सरि कहाँ ध्यान में आयेगी।
नेह की डोर पर तू नटी सी चले,
मैं भी नट की तरह झूम लूँ नाच लूँ।।2।।
तू कहे तो रुकूँ तू कहे तू चलूँ।
अब न पतझड़ के दिन हैं न ऋतु ग्रीष्म की,
शीत की रात बीते समय हो गया,
याद में ही बची बूँद बरसात की,
है बसंती सुबह की पवन मोदमय।
तुझमें हो यदि हुनर अंक में आ उतर,
तू भ्रमर हो सके पुष्प हो मैं खिलूँ।।3।।
तू कहे तो रुकूँ तू कहे तू चलूँ।

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