पावर में आकर गरियाना नया शगल।
जबकि पता है जो भी आया लिया निकल।।1।।
लोकतंत्र में हाथापाई जायज है।
कुर्सी पर बैठे हैं फिर क्यों उखल-बिखल।।2।।
अब सच्चा इतिहास लिख रहे, उजले ठग।
गंजों के सिर पर हैं कीलें रहीं मचल।।3।।
सच कहने की कीमत मैं दे डालूँगा,
संभव नहीं कींच-कच्चड़ में पड़ूँ फिसल।।4।।
'मुँह में राम बगल में छूरी' सत्य कहा है,
राम संग माया का रहना तथ्य सरल।।5।।
देशद्रोहियों में लिख जाना अच्छा है।
खुद की नजरों में गिर जाना नहीं 'विमल'।।6।।
विमल 9198907871
सच खुद की नज़रों में जो गिर गया वह क्या इंसान?
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बहन
हटाएंदेशद्रोहियों में लिख जाना अच्छा है।
जवाब देंहटाएंखुद की नजरों में गिर जाना नहीं 'विमल'
कुछ जंचा नहीं मित्र
देश में रहना और खाना खराब नहीं तो देशद्रोह में लिखना क्यों अच्चा है, विरक्ति किसी व्यक्ति विशेष तंत्र में बैठे अधिकारी, राजनेता या पार्टी से हो सकता है,
ब्लॉग पर आकर टिप्पणी करने के लिए हार्दिक आभार बड़े भाई
हटाएंदेशद्रोहियों में लिख जाना अच्छा है।
जवाब देंहटाएंखुद की नजरों में गिर जाना नहीं 'विमल'।
अब सच कहा तो देशद्रोही तो कहलायेंगे ही...
बहुत खूब ।
कहा तो सच ही जाएगा, धन्यवाद बहन।
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बड़े भाई
हटाएंसुंदर प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बन्धु
हटाएंहार्दिक आभार बहन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बन्धु
हटाएंसत्ता में आकर किसी को किसी का होश कहाँ??संभवतः पाँच सालों में चार साल एक दूसरे की टाँग खिंचाई में ही निकल जाते हैं।सार्थक और सटीक व्यंग विमल भाई।लिखते रहिए,मेरी शुभकानाएं 🙏🙏
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बहन 🙏🙏
हटाएं*शुभकामनायें 🙏
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार🙏
हटाएंवाह!गज़ब कहा सर 👌
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बहन🙏
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएं'सोद्देश्यता कला की आत्मा होती है' इस तथ्य को रेखांकित करती अत्यंत सार्थक और सारगर्भित रचना। बधाई और आभार।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बन्धु,
हटाएंधन्यवाद
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