रविवार, 11 सितंबर 2022

शुभे

कुण्डल कानों पर छजे, छजे नाक नकबिन्दु।
बिंदिया मस्तक-मध्य में, रचे इन्दु पर इन्दु।
रचे इन्दु पर इन्दु, मेघ बन लहरें कुन्तल।
दो अधरों के मध्य, दंत एल ई डी चंचल।
शुभे! तुम्हारी श्वास, सुवासित दश दिशि मण्डल।
चुम्बन लेता नित्य, अगर मैं होता कुण्डल।।

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 13 सितम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. कमाल का बिंब... एल ई डी चंचल।

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  3. कुण्डल कानों पर छजे, छजे नाक नकबिन्दु।
    बिंदिया मस्तक-मध्य में, रचे इन्दु पर इन्दु।/
    मोहक शैली में रची गई अति सुन्दर शृंगार रचना आदरनीय भाई विमल जी।
    'रचे इन्दु पर इन्दु ' तो कमाल है 👌👌👌👌🙏

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