मत
बिस्तर अभी उघाड़ प्रिये,
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हैं काँप रहे सब हाड़ प्रिये|
इतना मत
खोल किवाड़ प्रिये,
है शीती रही दहाड़ प्रिये|
वो
देखो पेड़ों की चोटी,
कुहरे का खड़ा पहाड़ प्रिये|
ये ओला
भरी रजाई है,
या गारे भरा तगाड़ प्रिये|
जो
फर्श बर्फ की सिल्ली है,
इसका कुछ करो जुगाड़ प्रिये|
थोड़ी
सी आग जला दो तुम,
इतना तो कर दो लाड़ प्रिये|
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