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यह
स्थान बिहार के भागलपुर जिले में स्थित था| यहाँ गंगा नदी के किनारे एक विख्यात
महाविहार था जिसकी स्थापना पाल शासक धर्मपाल ने की थी| 11वीं शताब्दी में यह
महाविहार एक विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हो गया| प्रसिद्ध विद्वान आतिश दीपंकर
ने यहाँ शिक्षा ग्रहण की थी| 13वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी ने इस महाविहार को
नष्ट कर दिया|
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यह
स्थल मध्यकाल में बंगाल की राजधानी रहा है| 1204-05 में मुहम्मद गोरी के सिपहसालार
इख्तियारुद्दीन-बिन-बख्तियार खिलजी ने जब बंगाल की राजधानी नदिया में प्रवेश किया तो
यहाँ का शासक लक्ष्मणसेन भाग खड़ा हुआ| 1485 में यहीं चैतन्य महाप्रभु का जन्म हुआ
था, जो कि प्रसिद्ध कृष्णभक्त थे| यह स्थान न्यायशास्त्र के अध्ययन का प्रमुख
केंद्र था|
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वर्तमान
में राजस्थान टोंक जिला माना जाता है महाभारतकालीन कार्कोट नगर है| यहाँ से दूसरी
व तीसरी शताब्दी के ब्राह्मी लिपि में अंकित “मालवानामजयः” नाम से एक लेख मिला है| यहाँ से आहत एवं गोल
तथा चौकोर मालव सिक्के मिले हैं|
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