समाज में सुन्दर, श्रेष्ठ व धनी दिखने की चाहत, धन को बहुमूल्य धातुओं के रूप में संचित करने की चाहत, अपनी बचत को गाढ़े समय के लिए बचाकर रखने की इच्छा और शादी-विवाह जैसे अवसरों पर लेन-देन व पहनने-पहनाने के लिए जेवरों को खरीद बेचा जाता रहा है। भारतीय समाज का एक बड़ा वर्ग सदियों से इन्हीं आभूषणों की सहायता से गिरवीं-गाँठ रखकर अपनी अर्थ-व्यवस्था को सँभालता रहा है।
दूसरी ओर इन्हीं के व्यापार से एक बड़ा वर्ग अपनी आजीविका पहले भी चलाता रहा है और अब भी चला रहा है।
भारत में सोने चाँदी की एक बहुत बड़ी बाजार है जो कि संसार के आभूषण बाजार में शायद सबसे बड़ी है। लेकिन क्या आपको पता है कि जितना बड़ा बाजार असली जेवरों का है उससे कहीं बड़ा बाजार नकली जेवरों का भी। इन नकली जेवरों में मिलावटी धातुओं से लेकर सस्ती धातुओं के फैंसी आभूषण तक शामिल हैं। इसके अलावा क्या आपने सोचा है कि जिस आभूषण को आप असली समझते हैं हो सकता है कि पीढ़ियों तक आपको पता ही न चले वह असली है कि नकली। ऐसे आभूषणों का भी बड़ा बाजार है कि स्वर्णकार उन्हें सौगन्ध खा खाकर उत्तम किस्म का बता बताकर बेचता है और उन्हें बेचने जायेंगे तो दूसरा स्वर्णकार उसका उचित मूल्य नहीं लगाएगा और उन्हें खोटयुक्त बतायेगा। जब आप पहले वाले आभूषण विक्रेता के पास जायेंगे तो वह पुनः अपने माल की गुणवत्ता को लेकर सौगन्ध उठायेगा और वापस खरीदी करेगा किन्तु नकद मुद्रा शायद ही देगा क्योंकि उसकी नीयत में वाकई खोट है।
इसके अतिरिक्त सोने का जो रेट आपको बताया जाता है असली सोने का होता है और जेवर टाँका युक्त अर्थात अशुद्ध धातुयुक्त। फिर भी आपको आभूषण की बनवाई के नाम पर अतिरिक्त ठग लिया जाता है। यही हाल चाँदी के जेवरों का भी । आजकल तो तनिष्क आदि के आभूषण आ रहे हैं जिन्हें उत्तम क्वालिटी का बताया जाता है फिर हॉलमार्क युक्त आभूषण आ रहे हैं जिनकी असलियत असन्दिग्ध मानी जाती है वरना मैं आपको अपना एक अनुभव बताऊँ हरदोई बड़ा चौराहा स्थित लाला प्यारेलाल सर्राफ की दूकान है जहाँ 1996 में मेरी माँ ने हथफूल खरीदे चाँदी के और फिर उन्हीं की दूकान पर उन्हीं की दूकान के कारीगर से उनपर सोने की कलई करवाई। मैं उस समय उनके साथ में ही था। उन हथफूलों को चढ़ावे पर भेजकर हम चार भाइयों के विवाह हो गए। 2019 में 23 साल बाद मेरी माँ को उन हथफूलों को बेचने का इरादा हुआ तो जब उसे अन्य स्वर्णकार के यहाँ बेचने का यत्न किया तो पता चला कि वे बेहद सस्ती धातु गिलट के बने हैं। दुकानदार के यहाँ शिकायत आदि करने के लिए इतने समय तक रसीद कौन सँभालता है। मैंने या मेरी माँ ने भी नहीं सँभाली। किन्तु एक चीज समझ में आई कि चमकती चीजें प्रायः छल करती हैं और परखेंगे तो उनकी चमक चली जाती है। कल्पना करें यदि उन हथफूलों को हम चार भाइयों में से किसी एक ने भी अपने पास रखने का फैसला किया होता तो आज भी हम उन्हें चाँदी का ही समझ रहे होते।
तो भइया आभूषण खरीदें शौक से किन्तु जानबूझकर। अन्यथा धनी होने का भ्रम पालने से कोई लाभ नहीं, जब समय आएगा और असलियत पता चलेगी तब तक बहुत देर हो जाएगी। बेहतर हो तो धन का सदुपयोग करें और शरीर पर पत्थर लादने का मोह छोड़ ही दें।
हस्तस्य भूषणं दानं सत्यं कंठस्य भूषणं।
श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रं भूषणैः किंप्रयोजनम्।।
भइया आभूषण खरीदें शौक से किन्तु जानबूझकर। अन्यथा धनी होने का भ्रम पालने से कोई लाभ नहीं, जब समय आएगा और असलियत पता चलेगी तब तक बहुत देर हो जाएगी। बेहतर हो तो धन का सदुपयोग करें और शरीर पर पत्थर लादने का मोह छोड़ ही दें।....रहित ही उपयोगी जानकारी एवम संदेशपूर्ण लेख ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बहन.व होलिकोत्सव की शुभकामनाएं
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