इस मन को बहला लेते हैं।
धूप नहीं आई है छत पर,
थोड़ी आग जला लेते हैं।
कहाँ अकेले जाकर घूमूँ,
सोचा तुम्हें बुला लेते हैं।
बहुत पुराना याराना है,
जब तब इसे निभा लेते हैं।
ज्यादातर पैदल चलकर हम,
पर्यावरण बचा लेते हैं।
सेहत है व्यापार हमारा,
जल में दूध मिला लेते हैं।
नाम हमारा छोटा सा है,
तुझसे जोड़ बढ़ा लेते हैं।
कृपया पोस्ट पर कमेन्ट करके अवश्य प्रोत्साहित करें|
हल्की फुलकी कामनाओं के साथ भावपूर्ण लेखन !!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बहन।
हटाएंकहाँ अकेले जाकर घूमूँ,
जवाब देंहटाएंसोचा तुम्हें बुला लेते हैं।
बहुत पुराना याराना है,
जब तब इसे निभा लेते हैं।
👌👌👌👌👌🙏🙏
रचना को ढंग से पढ़कर टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार बहन। नमन।
हटाएंपर जल में दूध मिलाना नहीं भाया भाई 🙏😊
जवाब देंहटाएंबहन पहले हम.दूध में पानी मिलाते थे अब पानी इतना ज्यादा होता है कि कहना पड़ा।
हटाएंठीक 😃
हटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएं--
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।
हार्दिक आभार बड़े भाई।
हटाएंबहुत सुन्दर,बेहतरीन भाव!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बन्धु।
हटाएंAchchi kavita. Badhai
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार भाई।
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