सोमवार, 25 जनवरी 2021

परिवर्तन

भाई लोग कभी कभी बहुत निराश हो जाते हैं। कभी स्वयं को कभी विधाता को दोष देते हैं। बन्धु धैर्य रखें समय बड़ा बलवान है। वह हर घाव का इलाज रखता है।
सन 91 में दो लाइन लिखी निजी अनुभव से 

सब सोये मैं जागा फिर भी रहा अभागा।
एक सोने का हंस बनाया लोग कह गए कागा।।

फिर 2021 के विकट कोरोना काल में जब आर्थिक रूप से स्वयं की कमर टूट गई तब भी जीवन के प्रति एक नई दृष्टि विकसित हुई और फिर दो लाइन लिखी

मेरी खुली किताब के पन्ने पलट के देख।
चाँदी के भाव बिक गए सिक्के गिलट के देख।।

6 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह ...बहुत सुन्दर।
    72वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपको भी गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं बड़े भाई, नमन।

      हटाएं
  3. बहुत ही यथार्थ पूर्ण एवं समसामयिक पंक्तियों का सृजन किया है आपने..

    जवाब देंहटाएं











हमारीवाणी

www.hamarivani.com
www.blogvarta.com