मुक्तक
बकरियों से भर गया उद्यान है।
और बकरा हो गया जवान है।
पत्थरों की आ गई शामत यहाँ,
रख रहा छुरों पे कोई शान है।।1।।
मेरे पास उसके लिए एक ही उपहार था,
साँसों की खुशबू थी बाहों का हार था।
चाँदी की दीवार मैं लाँघ नहीं पाया,
ऊँची थी बिल्डिंग और बन्द हर द्वार था।।2।।
वाह...बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बड़े भाई, नमन।
हटाएंवाह !!!वाह!!! विमल भाई दोनों मुक्तक बढिया हैं।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीया, नमन।
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