सबसे पहले प्रत्येक सच्चे भारतीय को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। आज दिल्ली में हमारे साथ साथ सम्पूर्ण विश्व ने तीन परेडें देखीं। यह अपने आप में अभूतपूर्व है। पहली परेड राजपथ से जो हृदय को उल्लसित कर गया। दूसरी किसानों की परेड। जब 12 बजे से ट्रैक्टर परेड की अनुमति मिलने के वाबजूद 8:43 पर ही किसानों ने टीकरी बॉर्डर पर बैरिकेडिंग तोड़कर पैदल ही मार्च शुरू किया तो लगा कि युवा जोश है इसलिए जो कर रहे हैं शायद स्वभावगत है। हृदय में किंचित उल्लास भी हुआ और लगा कि शायद मैं होता वहाँ तो मैं भी हर्षातिरेक में बैरिकेडिंग तोड़ देता और प्रयाण ही करता। उस समय मैं टेलीविजन के सामने था। सुबह 7 बजे से दोपहर 12 :30 तक मैंने कुछ नहीं किया सिर्फ चैनल बदल बदल कर समाचार देखता रहा। भारतीय लोकतंत्र पर गर्व का अनुभव करता रहा। लेकिन दोपहर बाद तीसरी परेड पुलिस की डंडा परेड की सूचना आयी तो थोड़ा गम्भीर होना पड़ा।
आखिर गड़बड़ी कहाँ है? एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगेंगे। यह तो पिछले तीन माह से हो ही रहा था। आखिर देश को, सरकार को, किसानों को और स्वयं को शर्मसार करने की आवश्यकता क्या थी? दोषी चाहे जो हो आज की घटनाओं से हमें अनुभव हो गया है कि अभी हमें बहुत कुछ सीखना है।
आज हम जान गए कि हमें किसी की चिंता नहीं, न संस्थाओं की, न संविधान की, न व्यवस्था की और न अपने वचनों की।
हम कब समझेंगे कि भीड़ का कोई चरित्र नहीं होता। हम अपने अधिकारों के लड़ते समय भीड़ तो इकट्ठा कर लेंगे लेकिन अपने बीच में घुसे भेड़ियों को कैसे पहचानेंगे। हम कब समझेंगे कि कोई हमारा खेल बिगाड़ भी सकता है। हमारे पास ऐसे लोगों से बचने की क्या व्यवस्था है। हमें सोचना होगा।
एक प्रश्न और वह कौन सा सन्देश किसान या सरकार देश को देने में सफल हुए जो अब तक देश तक नहीं पहुँचा था। जाहिर है इस नाटक में हमें शर्मसार होना पड़ा है।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (27-01-2021) को "गणतंत्रपर्व का हर्ष और विषाद" (चर्चा अंक-3959) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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हार्दिक आभार बड़े भाई, नमन।
हटाएंसही कहा आपने भीड़ की न तो कोई भाषा है न चरित्र ।
जवाब देंहटाएंसामायिक विषय पर सटीक भाव उपस्थित करता सृजन।
हार्दिक आभार नमन।
हटाएंसुन्दर एवं सजीव चित्रण करता हुआ सार्थक लेखन..
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीया बहन।
हटाएंभीड़ का कोई चेहरा नहीं होता। किसानों ने आंदोलन के लिए 26 जनवरी का दिन ही क्यूँ चुना? समझ में नहीं आता! सच में 26 जनवरी की परेड के साथ किसानों की परेड तो सही है पर डंडा परेड क्या किया जाए???? रोचक लेख!! सादर 🙏🙏
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद बहन, नमन।
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