भाई लोग कभी कभी बहुत निराश हो जाते हैं। कभी स्वयं को कभी विधाता को दोष देते हैं। बन्धु धैर्य रखें समय बड़ा बलवान है। वह हर घाव का इलाज रखता है।
सन 91 में दो लाइन लिखी निजी अनुभव से
सब सोये मैं जागा फिर भी रहा अभागा।
एक सोने का हंस बनाया लोग कह गए कागा।।
फिर 2021 के विकट कोरोना काल में जब आर्थिक रूप से स्वयं की कमर टूट गई तब भी जीवन के प्रति एक नई दृष्टि विकसित हुई और फिर दो लाइन लिखी
मेरी खुली किताब के पन्ने पलट के देख।
चाँदी के भाव बिक गए सिक्के गिलट के देख।।
सार्थक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय बहन।
हटाएंवाह ...बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएं72वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आपको भी गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं बड़े भाई, नमन।
हटाएंबहुत ही यथार्थ पूर्ण एवं समसामयिक पंक्तियों का सृजन किया है आपने..
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय बहन।
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