गुरुवार, 28 जनवरी 2021

उर में उठती पीर

मिट्टी खाई गिट्टी खाई , खा डाली सीमेंट याद है।
गए पोतने दीवारों को , चेहरे पर की पेंट याद है।।1।।
डाली पर दो बन्दर बैठे, मुझको ढँग से ताक रहे थे,
गड्ढा खोद गिटैली रख के, ढक दी थी वो गेंद याद है।।2।।
बहुत बार शैतानी करके, बच जाते थे कभी कभी हम,
लेकिन फँसे सजा पाई जब, खूब दुखी थी पीठ याद है।।3।।
भरी दोपहर छुक छुक करती, जिसके नीचे रेल चली थी,
बच्चों के मन भाने वाला, वो पीपल का पेड़ याद है।।4।।
विदा हुई जब काली कोयल, पीछे पीछे दौड़ रहा था,
ठोकर खाकर गिरा जहाँ पर, वहाँ पड़ी थी ईंट याद है।।5।।
था जिस दिन स्कूल आखिरी, छूट गया कुछ बहुत कीमती,
अंकपत्र दे ठगा गया था, उर में उठती पीर याद है।।6।।

2 टिप्‍पणियां:

  1. भावपूर्ण रचना भाई विमल जी। स्कूल का आखिरी दिन याद आते ही मन भीग सा जाता है।

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