बुधवार, 27 जनवरी 2021

शामत

मुक्तक

बकरियों से भर गया उद्यान है।
और बकरा हो गया जवान है।
पत्थरों की आ गई शामत यहाँ,
रख रहा छुरों पे कोई शान है।।1।।

मेरे पास उसके लिए एक ही उपहार था,
साँसों की खुशबू थी बाहों का हार था।
चाँदी की दीवार मैं लाँघ नहीं पाया,
ऊँची थी बिल्डिंग और बन्द हर द्वार था।।2।।

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