रविवार, 9 अगस्त 2020

विद्यालय

जब आप विद्यालय की चर्चा करते हैं विशेषकर प्राइवेट विद्यालय की तो आपको यह भी लिखना चाहिए कौन से प्राइवेट विद्यालय। एक ओर उंगलियों पर गिनने योग्य शहरी क्षेत्र के कुछ विद्यालय हैं जो ब्लैक मनी से खड़े हुए हैं और निरन्तर ज्यादा इनपुट लेकर कम आउटपुट दे रहे हैं अर्थात भारी भरकम फ़ीस लेते हैं और कुछ हजार बच्चों को पढ़ाकर अपनी पीठ थपथपा लेते हैं। यहाँ अध्यापक पढ़ाता कम है अभिभावक से पैसा ज्यादा ऐंठता है कभी कभी अभिभावक के कान भी उमेठता है। बुआओं और चाचाओं के द्वारा बने मॉडलों से ऑफिस की या अन्य किसी कमरे की दीवार सजी होती है और नीचे नर्सरी के जी के बच्चों के नाम लिखे होते हैं। मेरा अनुभव है पढ़ाई के नाम पर इन विद्यालयों में सिर्फ कॉपियाँ चेक होती हैं और होमवर्क दिया जाता है जिसे या तो अभिभावक कराएं या आपका ट्यूटर कराये। फिर फ़ीस भी अनाप शनाप हर साल रजिस्ट्रेशन फीस, एडमिशन फीस, डेवलपमेंट फीस, पूअर्स फण्ड, लाइब्रेरी फीस, सायकिल स्टैंड चार्ज,  इलेक्ट्रिसिटी फीस, ऑनलाइन सर्विसेज फीस, कंप्यूटर फीस और भी बहुत सारे चार्ज जिनमें से कई सुविधाओं का बालक उपयोग ही नहीं करता। अब ऐसे विद्यालय अगर अपने अध्यापकों का पेमेंट नहीं कर रहे तो बिल्कुल गलत बात है। आपको लगता है ये आपके बच्चे को होशियार बना रहे। वास्तव में ये होशियार बच्चे का ही एडमिशन लेते हैं। हर साल जिले भर के  विद्यालयों के 50 बच्चों को टॉप मिलता है कभी मालूम किया है फिसड्डी बच्चे कितने होते हैं। ऐसे विद्यालयों की वसूली पर लगाम लगनी चाहिये। दूसरी ओर मेरे जैसे विद्यालय संचालक भी हैं। मैं 1998 से विद्यालय चला रहा हूँ कमाई के मामले में अपने तीन अन्यभाइयों से बहुत पीछे हूँ। मैं समझता हूँ कुछ अन्य विद्यालय भी मेरी तरह के ही चल रहे होंगे। हकीकत यह है मुझे अधिकांश अभिभावकों ने नवंबर से मार्च तक की ही फ़ीस नहीं दी है अप्रैल और उसके बाद की छोड़िये। जो वसूल ले उसे 15 प्रतिशत कमीशन दूँगा। अप्रैल व उसके बाद की फ़ीस की वसूली शून्य। फ़ीस वसूली का कार्य अध्यापकों ने खुद किया तब कहीं जाकर अध्यापकों को अप्रैल मई का वेतन दे पाया हूँ। उसके बाद का वेतन देने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है। मुझे इतने टिप्पणी कारों में से किसी एक को रोजगार देने में प्रसन्नता होगी कि वह अप्रैल व उसके बाद की फ़ीस वसूल ले और यदि वह 80 प्रतिशत फ़ीस वसूल पाया तो हर 80 में 20 उसके। देहात का सच यह है 20 प्रतिशत छात्र सूचना भेज चुके हैं कि उनका नाम काट दें। वह इस साल पढ़ेंगे नहीं इसका कारण भी किसी ने साफ़ साफ़ नहीं बताया लेकिन बात यही है फ़ीस नहीं देंगे स्कूल बदल लेंगे। अब मैं शिक्षकों को वेतन कहाँ से दूँ। मैं तैयार हूँ शिक्षक को भी रसीद बुक देने के लिए कि अभिभावक दे तो वे जमा कर लें और अपना वेतन काट के जो बचे मुझे दे दें। मुझे तो दुबारा स्कूल खुलने पर स्कूल में जो साँप बिच्छुओं ने डेरा डाल रखा है उनको हटाने के लिए भी उधार ही लेना पड़ेगा। अब सरकार कुछ मदद करे तो बात बने। वरना भगवान ही मालिक है।

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत मर्मान्तक और कडवे सच की और ध्यान दिलाया आपने, विमल जी| कथित 'बड़े' स्तर के विद्यालयों से नॉन कोरोनाकाल में पाला पड़चुका है | अब तो खैर बच्चे कालेज भी पार करने वाले हैं | पर इधर- उधर से परिचित शिक्षकों की यही व्यथा है कि ऑनलाइन पढ़ाने की मुसीबत दुगनी हो गयी , पर वेतन के नाम पर हाथ खाली | कितनों को भय है संचालक नौकरी से ना निकाल दें | आपने अपनी व्यथा लिखी वो सोचने पर विवश करती है | ज्यादा गयी थोड़ी रही के साथ यही आशा है फिर से अच्छे दिन आयेंगे | सार्थक लेख के लिए साधुवाद |

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    1. सच कहा बहन, एक तो सरकार की नीति इस मामले में ढुलमुल है| वह शिक्षकों के साथ कहीं खड़ी दिखाई नहीं देती| न ऐसा लगता है कि विद्यालय संचालकों से ही कोई वार्तालाप कर इसका हल निकलना चाहती है| समय परिवर्तन शील है अच्छे दिन भी आयेंगे अवश्य बस इसी आशा के सहारे चल रहा है सब| धन्यवाद|

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  2. जी आशा पर संसार जीवित है | जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई |

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    1. सच कहा आपको जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं|

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