इस ब्लॉग को मैने अपने निजी विचारों को प्रस्तुत करने के लिये शुरू किया है। बहुत सम्भव है कि मेरे विचार किसी अन्य से मेल खाते हों और यह लगता हो कि वे किसी के कॉपीराइट का उल्लंघन करते हों तो कृपया मुझे अवश्य अवगत करायें। विशेष कृपा होगी।
जी विमल जी , लगता है सरकार ने भाषा पर कोई स्पष्ट निति नहीं बनाई | पर अभी बहुत बदलाव होने की उमीद है | संस्कृत और हिंदी पर परा ध्यान देने की जरूरत है | असल में हम हिंदी का भला चाहते हैं पर अपने बच्चों को फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते देखना चाहते हैं . बस यहीं खोट है | साथ में भाषा में रोजगार के अवसर कम हैं | वैसे भी सरकारी विद्यालय तो गरीबों और साधनहीनों के स्कूल बनकर रह गये हैं | संभ्रांत वर्ग इनसे जुड़ता तो ये भी सुधरते और भाषा भी | सुंदर आलेख |
वास्तव में अंग्रेजों से हमने उत्तराधिकार में उनकी भाषा, रहन-सहन व उनकी अपसंस्कृति भी अपना ली। अब उससे मुक्ति के लिए नवीन संघर्ष की नितान्त आवश्यकता है। इस दशक में जो चेतना निर्मित हुई है यदि वह दिनोंदिन विकसित हुई तो अवश्य ही भारतीय भाषाओं को उनका अधिकार प्राप्त होगा। आभार बहन।
विचारणीय और चिन्तनीय।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बड़े भाई नमन
हटाएंएक चिंतनीय विषय है ... भाषा का विकास, संस्कृति का रक्षण बहुत जरूरी है ...
जवाब देंहटाएंसच कहा, मुझे इस सरकार से उम्मीद थी मगर ना उम्मीदी ही मिली।
हटाएंजी विमल जी , लगता है सरकार ने भाषा पर कोई स्पष्ट निति नहीं बनाई | पर अभी बहुत बदलाव होने की उमीद है | संस्कृत और हिंदी पर परा ध्यान देने की जरूरत है | असल में हम हिंदी का भला चाहते हैं पर अपने बच्चों को फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते देखना चाहते हैं . बस यहीं खोट है | साथ में भाषा में रोजगार के अवसर कम हैं | वैसे भी सरकारी विद्यालय तो गरीबों और साधनहीनों के स्कूल बनकर रह गये हैं | संभ्रांत वर्ग इनसे जुड़ता तो ये भी सुधरते और भाषा भी | सुंदर आलेख |
जवाब देंहटाएंवास्तव में अंग्रेजों से हमने उत्तराधिकार में उनकी भाषा, रहन-सहन व उनकी अपसंस्कृति भी अपना ली। अब उससे मुक्ति के लिए नवीन संघर्ष की नितान्त आवश्यकता है। इस दशक में जो चेतना निर्मित हुई है यदि वह दिनोंदिन विकसित हुई तो अवश्य ही भारतीय भाषाओं को उनका अधिकार प्राप्त होगा। आभार बहन।
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