यों ही नहीं कहते उसे करतार हम।
हर ओर उसकी देखते सरकार हम।।
हमने लगाये पुष्प पादप श्रम किया,
हैं देखते उनपर खिली तलवार हम।।
जब भी लगा हर रास्ता अब बन्द है,
खुद हो गये हैं आप ही से पार हम।।
क्या कर्म था क्या फल मिला किसको पता,
हर हानि का उस पर रखेंगे भार हम।।
ज्यादा कभी तो कम कभी अनुमान से,
मजबूत भी तो फिर कभी लाचार हम।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें