अनामिका |
कहाँ तो एक अदद नौकरी की तलाश में एड़ियाँ खत्म हो जाती हैं और मिलती नहीं है। इधर तो एक ही आदमी के लिए बाढ़ आ गयी। अगर फीडिंग न होती तो फर्जी वाड़ा पकड़ में नहीं आता वाह। मेरा प्रश्न यह है कि क्या वेतन जारी करने के लिए ड्यूटी के दिनों या समय का कोई मानक नहीं है, या आँख मीचकर भुगतान हो जाता है। दूसरे क्या कोई अकेला व्यक्ति इतना सक्षम हो सकता है कि 25 स्थानों पर अपनी सेवाएं प्रदान करे। यदि एक व्यक्ति एक दिन में एक जगह अपनी ड्यूटी लगाए और दूसरे दिन दूसरी जगह तो भी वह माह में एक बार भी अपने कार्य स्थल पर नहीं पहुंचेगा क्योंकि छुट्टियाँ भी होती हैं। जाहिर है दाल कहीं ज्यादा काली है जितनी दिखाई देती है और पूरा विभाग इसके लिए दोषी है। मेरा हृदय मानता नहीं था कि कैसे श्री कृष्ण एक होते हुए भी अपनी हर रानी के पास बने रहते थे या फिर कैसे बालि जिस द्वार से निकलते थे उसी पर भगवान उसे विराजमान मिलते थे। अनामिका शुक्ला के इस प्रकरण से विश्वास हो गया।
धुंधली तस्वीर ही नहीं है बहुत कुछ धुंधला है सिर्फ वेतन का मसला नहीं है, इस प्रकरण में 1 को छोड़कर शेष 24 का रोजगार भी छीना गया उसकी भरपाई कौन किससे करायेगा।
समाचार कहता है कि अनामिका ने शिक्षा विभाग को धोखा दिया मैं कहता हूँ कि शिक्षा विभाग ने पूरे देश को धोखा दिया। सच तो यह है तमाम अध्यापक अध्यापिकाएं स्कूल गए बिना ही वेतन आहरित कर लेते हैं और इसे सब जानते रहते हैं। एक महिला शिक्षा मित्र को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ जिनके पति nprc के पद पर हैं JHS के प्रधानाचार्य और पत्नी शिक्षा मित्र हैं कभी स्कूल नहीं गयीं। मुझसे नाम मत पूछना मैं बहुत छोटा आदमी हूँ, बड़े बड़े मुँह नहीं खोलते जबकि उन्हें मुँह खोलने का वेतन मिलता है।
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यही हाल है देश में नौकरी के लिए।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद, यह तो है ही।
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