शनिवार, 13 जून 2020

तेरा क्या होगा काली

सुबह जब घर से निकलता हूँ तो इसलिए कि घर पर कोई है जिसके प्रति कुछ कर्तव्य है, शाम को जब घर लौटता हूँ तो सिर्फ इसलिए कि घर पर कोई है जो लगाम थामे है कि लौट आओ। दिन भर घर में क्या होता है उसमें दखल कहाँ दे मिलता है। टीवी पर क्या चलना है मैं कब तय कर पाया सारे सीरियल तो उसके हैं और उसके पसन्दीदा प्रोग्राम भी तो उसी समय आते हैं जब मैं होता हूँ घर में। वह जो 100 रूपये पा जाती है वो उसके हैं सिर्फ उसके और मेरे 10 रुपयों पर हक होता है परिवार के हर शख्स का। बच्चे की चड्ढी, उसका ब्लाउज, स्कूल की फ़ीस पड़ोस में मुँह दिखाई के लिए पैसे सब मेरी जिम्मेदारी है, फिर भी लांछन मैं स्त्री का अपकारी हूँ। बहू वो पसन्द करती हो वही दामाद मुझे तो चिन्ता करनी पड़ती है विवाह में खर्च कहाँ से होगा। वो बता देती है कितने थान जेवर कितने थान कपड़ा, कौन सा होटल कभी समझौता नहीं मेरी जेब और अपनी डिमांड से। वो जो कभी कभार किसी को ठग लेता हूँ किसके लिए वो जो घर पर है। वह एक ओर पूछती है खाने में क्या बनेगा और जवाब की प्रतीक्षा किये बिना दे देती है फैसला कि वह क्या बना कर आयी है। अगर वाल्मीकि होने की राह पर आऊँ तो तेरा क्या होगा काली।
ये जो ऊपर लिखा है आधा सच है वह है तो मुझे पता है शाम को जाना कहाँ है, खाना कहाँ है, सुबह घर से निकलना क्यों है, बॉस की झिड़कियाँ खानी क्यों हैं, वो है तो मुझे पता है सोने चाँदी का भाव ही नहीं, लोन तेल गैस का भी। वो है तो पता है कि एक अदद घर भी बहुत जरूरी चीज है।

2 टिप्‍पणियां:











हमारीवाणी

www.hamarivani.com
www.blogvarta.com