१५/१२/१९९७
ओ! मील के पत्थर तुम्हें मेरा नमन।
पत्थर नहीं तुम हो गतागत ज्ञान दाता।
है प्रीत जिसको लक्ष्य से वह जान पाता।
किस दिशा में और कितना है गमन।
ओ! मील के पत्थर तुम्हें मेरा नमन।
पथ की महत्ता मूक होकर भी बताते।
भटके हुओं को मार्ग पर भी तुम लगाते।
और करवाते वियुक्तों का मिलन।
ओ! मील के पत्थर तुम्हें मेरा नमन।
पथ पर चला जो करके अनदेखी तुम्हारी।
उसने कदाचित ही स्वयँ की गति संवारी।
प्राप्त कर पाया सफलता की शरण।
ओ! मील के पत्थर तुम्हें मेरा नमन।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-06-2020) को "ज़िन्दगी के पॉज बटन को प्ले में बदल दिया" (चर्चा अंक-3721) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार बड़े भाई|
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आने के लिए व मूल्यवान टिप्पणी के लिए धन्यवाद बहन|
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