एक तो बिना पूछे व्हाट्सएप ग्रुप से जोड़ लेते हो, बिना यह विचार किये हुए कि मेरे पास समय भी है कि नहीं। चलो माना मेरे पास ग्रुप छोड़ने का विकल्प है तो छोड़ दिया। मसला खत्म।
नहीं मसला खत्म नहीं है, आप विचार करें आपने ग्रुप बनाया क्यों? अपने ग्रुप का उद्देश्य अवश्य स्पष्ट करें। अगर वाकई साहित्य और भाषा का उत्थान आपका उद्देश्य है तो प्रथम तो भाषा और साहित्य का अध्ययन और अनुशीलन स्वयं करें। नीम हकीम अस्पताल खोलें तो ठीक मेडिकल कॉलेज भी खोलकर बैठे हैं यह हजम नहीं होता। दूसरे जिन सदस्यों को जोडें उन्हें बता दें कि परिष्कृत और परिमार्जित रचनाएं प्रस्तुत करें। यदि कुछ रचनाएं अपरिष्कृत और अपरिमार्जित हैं तो एडमिन को अधिकार होना चाहिए कि वह उस रचना के सन्दर्भ में उचित सुझाव अपने सदस्य को दे। सदस्य को चाहिए कि उन सुझावों को सहृदयता से अवलोकन करे और उचित होने पर स्वीकारे।
किसी भी लेखन को सही ठहराने से भाषा व साहित्य का उत्थान तो होने से रहा ग्रुप की गरिमा भी समाप्त होती है।
अगर एडमिन के अलावा अन्य सदस्य कोई सुझाव दे रहा है तो अवश्य विचार करें। यह क्या बात हुई कि वाह वाह ग्रुप में कर दूँ तो लेंड़ फूल गए और जरा सी आलोचना हुई तो गाल फूल गए।प्रसंशा पटल पर चाहते और डाँट पर्सनल रूम में। यह द्वैध आचरण है इससे अन्य लोगों के सीखने का अवसर समाप्त होता है। ग्रुप में बैठकर हगोगे तो डंडे खाने का साहस भी रखो। टाइपिंग मिस्टेक, शब्दों की वर्तनी सम्बन्धी त्रुटियाँ जाने अनजाने सबसे होती हैं किन्तु बुद्धिमान लोग ऐसी पोस्ट को डिलीट कर सुधरी पोस्ट दुबारा लगा देते हैं। त्रुटि को जानकर और मानकर पोस्ट को डिलीट न करना निर्लज्जता है और अर्थ का अनर्थ होने से आपकी रचनाधर्मिता का महत्व समाप्त होता है।
नवोदितों को चाहिए वे स्वीकारें कि अभी सीख रहे हैं इससे उनकी सम्मान घटता नहीं है अपितु बढ़ता है। शिक्षार्थी कभी अपमानित नहीं होता गुरुता के दावेदार पग पग पर अपमानित होते हैं।
कुछ सामान्य त्रुटियाँ निम्नलिखित हैं नवोदित इन पर अवश्य ध्यान दें।
1- छन्द सम्बन्धी त्रुटियाँ, आजकल इन पर ध्यान नहीं दिया जाता और इनको लेकर कोई चिन्ता की बात नहीं क्योंकि छन्दमुक्त कविता का युग है।
2- विरोधाभासी विचार सम्बन्धी त्रुटियाँ, इन पर अवश्य ध्यान दें विशेषकर लम्बी कविताओं और गजलों में प्रायः नवोदित शुरुआत में जो कहते हैं अन्त में उसी बात की काट भी कर जाते हैं। इससे कवि व लेखक दिग्भ्रमित प्रतीत होता है। स्रोता अथवा पाठक को आप क्या कहना चाहते हैं। यह स्पष्ट रखें।
3- संस्कृति की अज्ञानता सम्बन्धी त्रुटियाँ, सरस्वती को शक्ति की देवी, दुर्गा को ज्ञान की देवी, शंकर को सर्जनहार, विधाता को प्रलयंकर कहना आदि।
4- जल्दी जल्दी बहुत अधिक लिखकर तत्काल पोस्ट करना, यह बहुत बड़ी त्रुटि है एक साहित्यकार अपने समय का अमिट हस्ताक्षर होता है। आज वह जो लिखेगा वर्षों बाद वह प्रमाण रूप में स्वीकारा जाएगा अतः जो लिखें उसे कम से कम पाँच बार पढ़ने का नियम अवश्य बनायें तब पोस्ट करें।
5- स्वयं को स्वयंभू मानने की त्रुटि, जो लिखें उसे अपने से निकटतम वरिष्ठ साहित्यकार को अवश्य सुनायें और सुझाव प्राप्त करें।
आप मुझसे सहमत हों आवश्यक नहीं किन्तु विचार अवश्य करें। इस पोस्ट में बहुत कुछ छूट गया है। थोड़ा लिखा अधिक समझना। हमारे यहाँ पत्र में लिख दिया जाता रहा है, तथावत लें।
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