लहू तो लाल ही है भेड़ का भी भेड़ियों का भी।
पत्ते हरे होते हैं नीम के और हरा होता है अंगूर भी।
कलर नहीं फितरत की बात करो।
खयाल छोड़ो हकीकत की बात करो।
मुझे यह मत बताओ कि पानी तो पानी है,
मुझे यह बताओ कि पानी की क्या कहानी है।
जमीन से निकलता है पेट्रोल किन्तु पी नहीं सकते।
इसी तरह सदभाव की कविता अच्छी है,
मगर इस कविता को जी नहीं सकते।
ये सनातनी जिस कुएँ से पीते हैं वहाँ,
गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी और नर्मदा का,
जल नहीं अमृत बहता है।
तुम तुलना करते हो उन दिलों से जिनमें,
सहारा का रेगिस्तान रहता है।
तुम पढ़लिख ज्यादा गए हो देखते हो फैट
किन्तु हम देखते हैं कि डालडा है या देशी है।
दकियानूसी है कि नवोन्मेषी है।
दूध से बनी है रबड़ी और दही भी दूध से बनता है,
सबके अपने टेस्ट हैं कोई किसी की कहाँ सुनता है।
खट्टा होता है दही और नींबू भी खट्टा होता है,
मगर रायते में दही का ही जलवा है।
तो ज्यादा रायता मत फैलाओ,
असलियत पर आओ।
असलियत ये है भेड़ भेड़ है,
और भेड़िया भेड़िया।
बहुत सुन्दर् और सशक्त रचना।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बड़े भाई, प्रणाम।
हटाएंअसलियत पर आओ।
जवाब देंहटाएंअसलियत ये है भेड़ भेड़ है,
और भेड़िया भेड़िया।----- बिलकुल सही कहा आपने |पर अब भेड़ को भेड़ कहा जा सकता है किन्तु भेड़िये को भेड़िया कहने में लोगों को आपत्ति है | बहुत सुन्दर लेख |
मत कहें भाई, किन्तु पहचानें और अपने झुण्ड से अलग रखें। जय हिन्द। आभार आपका टिप्पणी के लिए।
हटाएंबहुत खूब कहा ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बहन
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