मेरी यह पोस्ट चोरों को समर्पित है। मैं यह जानता हूँ मेरी यह पोस्ट पढ़ने के बाद चोर चोरी करना नहीं छोड़ेगा। छोड़े भी क्यों कुतिया की पूँछ छह साल नली में रखो फिर भी टेढ़ी की टेढ़ी फिर मैं लेखक हूँ लिखना क्यों छोड़ूँ। तो चोर महाराज जी मैं लिख रहा हूँ।
आपने बहुत बार चोरी की और बहुत सी चीजें चुराईं जरा सोच समझकर और हिसाब लगाकर बताइये उनमें से कितनी चीजें सही-सलामत आपके पास हैं। क्या कहा? चोरी किये गये माल का आधा भी नहीं। छिः छिः कितनी बुरी बात है आपने अपने बुढ़ापे के लिये कुछ तो अधिक बचाया होता। खैर यह बताइये कि आप अपने सम्माननीय पेशे पर कितना गर्व सार्वजनिक रूप से व्यक्त कर सकते हैं। क्या पब्लिक्ली आप कह ही नहीं पा रहे हैं कि आप चोर हैं? यहाँ भी बेइमानी देखिये आप चोर हैं लेकिन आप कह ही नहीं पा रहे हैं कि आप चोर हैं यानी आपमें सच का सामना करने का साहस भी नहीं है।कोई बात नहीं आपके परिवारवालों व पास-पड़ोसियों को अवश्य इस बात पर गर्व होगा कि आप चोर हैं उन्हें इस बात के प्रचार के लिये लगा दीजिये कि आप चोर हैं। क्या आपसे इतना भी नहीं हो सकता कि आप अपने मुफ्त के प्रचार को सहन कर सकें। अरे भाई आपका काम ही काबिले तारीफ़ है आप इतनी मेहनत से चोरी की योजना बनाते हैं और उस पर अमल करते हैं इस बात की परवाह किये बगैर कि अगर पब्लिक ने पकड़ लिया तो क्या होगा कभी कभी इतनी धुनाई होती है कि पूछो मत। जिसने कभी किसी कुत्ते को धत्त नहीं किया होता वह भी दो चार धौल जमा देता है। कभी कभी तो पिटते पिटते तुम्हारे कोई कोई भाई बन्धु जान से भी मारे जाते हैं। वैसे पुलिस पकड़ ले तो फिर क्या कहना पिटाई का झंझट नहीं सुरक्षा और चाय पानी अलग। हाँ इसके लिये चोरी का माल उनके साथ बाँटना पड़ता है। आपको क्या कौन सा आपके बाप का माल था जो आपको बाँटने में कठिनाई हो। किन्तु क्या कभी आपने सोचा है कि चोरी का माल आप किसी से भी बाँट लें तो दानी तो न कहे जायेंगे।
खैर अपने को क्या मुझे बड़ी खुशी होती है जब मुझे पता चलता है कि किसी पुलिस-कर्मी के घर चोरों ने हाथ साफ़ कर दिया। चोर महराज जानते हैं क्यों? आखिर कौन सा तन्ख्वाह के पैसे लूट लिये आपने। शायद ही कोई पुलिसवाला अपनी तन्ख्वाह को जीवन में हाथ लगाता होगा क्योंकि अधिकाँश पुलिसकर्मियों के ऊपर ऊपर की कमाई इतनी बरसती है कि पूछो मत।अगर किसी लेखपाल के घर का ताला टूटे तो पूछो ही मत इस प्राणी ने तो ऊपर की कमाई के मामले में पुलिस को भी पीछे छोड़ दिया है। वैसे कुछ पुलिसवाले और लेखपाल बेचारे बड़े भले और ईमानदार होते हैं उनसे मैं क्षमा चाहूँगा कि उनके बन्धुओं के बारे में इतना कुछ पढ़ते समय उन्हें कुछ तकलीफ़ हो रही हो। लेकिन चोर महाराज जब आप गलती से इनके घर में घुस जाते होंगे तो आपको बड़ी तकलीफ होती होगी क्योंकि उनके घर में चोरी करने लायक कुछ मिलता होगा तो वे चीजें होंगी बेरोजगार बच्चों की डिग्रियाँ और अविवाहित कन्याओं के आँसू। क्या कभी चुराई हैं ये चीजें आपने। नहीं, तो अवश्य चुराइयेगा ये चीजें किसी के भी घर में मिलें अवश्य हर ले जाइयेगा।
बूढ़े बीमार माँ-बाप के गम, विधवा स्त्रियों की पीड़ा, बेरोजगार हृदयों की कसक, भूखे बच्चे की सिसक, निर्धन मन की जर्जरता कभी चुराई है आपने। सच आप चुरा नहीं पायेंगे और अगर चुरा पायें तो चुराकर देखियेगा। आप अपने पेशे पर शर्मायेंगे नहीं गर्व का अनुभव कर पायेंगे, बिना किसी प्रयास के आदर योग्य प्रचार पायेंगे। जो कुछ चुरायेंगे उसका कई गुना ज्यादा अपने जीवन में पायेंगे।यूँ जब आप किसी के घर से चुराते हैं रुपया पैसा कपड़े जेवर घरेलू सामान तो सिर्फ़ इतना ही नहीं मिलता आपको। आपको मिलती है घृणा, गालियाँ अभिशाप और मानसिक अशान्ति। आप सोचते होंगे होगा कोई बात नहीं लोगों को जो कहना है कहें आखिर लोगों को क्या पता आप ही चोर हैं। तो ऐसा नहीं है श्रीमान जी जब आप चोरी करते पकड़े जाते हैं या आपके पास से चोरी का माल बरामद होता है तो लोग जान जाते हैं कि आप चोर हैं। आप दिन भर रजाई में खर्राटे भरते हैं कोई धन्धा किये बगैर लोगों की नजर में मेहनत से अधिक की दौलत जोड़ लेते हैं तो लोग जान जाते हैं आप चोर हैं।
कोई जाने या न जाने आप खुद जानते हैं कि आप चोर हैं और इस बिना पर कि आप चोर हैं कभी खुद का सामना कर के देखिये जनाब। शीशे के सामने खड़े होकर अपना चेहरा देखिये और कहिये यह एक चोर का चेहरा है। मैं जानता हूँ आप नहीं कर पायेंगे ऐसा इसलिये है क्योंकि दिल के किसी कोने में अभी शर्म बाकी है भलाई बाकी है, ईश्वर से भय बाकी है, इन्सानियत बाकी है और अगर आप कर पाते हैं तो वाकई तुम्हारी आत्मा मर चुकी है।जिनके शरीर मर जाते हैं उन्हें मृत कहा जाता है जिनकी आत्मा मर गई हो उन्हें क्या कहा जायेगा। चोर महाराज मुझे एक शब्द सुझा दीजियेगा। आपका बड़ा अहसान होगा। वैसे आप अकेले नहीं होंगे इस फेहरिश्त में। हिन्दुस्तान के ९९.९९% लोग जुड़ जायेंगे उस फेहरिश्त में जिनकी आत्मा मर चुकी है। आखिर क्या कारण है कि सवा अरब आबादी में ५०० सांसद ईमानदार नहीं मिल पाते जिन्हें सत्ता सौंपी जा सके। हम सब चोर हो गये हैं। चाहते नहीं एक ईमानदार आदमी हमारा प्रतिनिधित्व करे। कहा जाता है कि लोकतन्त्र जनता के द्वारा, जनता का शासन, जनता के लिये है। तो जैसी जनता वैसा शासन, वैसी ही जनता के द्वारा।
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