अंजुली में हैं सजाये सुमन अधरों से झरे।
नैन झिलमिल दीप हो मन को उजाले से भरे।
छवि तुम्हारी ओ प्रिये हरती सदा मन की थकन,
इस दशा में कौन तुमको दूर अपने से करे।
पूर्णिमा का चाँद सम्मुख हो रही साकार हो
स्वर्ग से उतरी परी का स्वर्णमय आकार हो
तुम हमारे सदन-उपवन-वन-विजन में बस गयी,
प्रात की पावन सुरभियुत पवन का व्यवहार हो।
तंत्रिकाएं हो गयीं झंकृत अजब अनुभूति से,
दश दिशाएं अमृत भरकर कलश निज कर में धरे।
इस दशा में कौन तुमको दूर अपने से करे।
काम है या मोह है या प्रेम है या वासना।
नेह का आनन्द है या बिछुड़ने की त्रासना।
कौन विश्लेषण करे या संश्लेषण मेंं जुटे,
कर रहा अव्यक्त की जैसे सतत आराधना।
जिस घड़ी से आ गया सानिध्य में तेरे प्रिये!
हो गया मैं पतन या उत्थान के भय से परे।
इस दशा में कौन तुमको दूर अपने से करे।
विमल 9198907871
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 17 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार बन्धु
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१८-०९-२०२१) को
'ईश्वर के प्रांगण में '(चर्चा अंक-४१९१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
नमस्ते बहन, हार्दिक आभार
हटाएंबहुत ही खूबसूरत रचना!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बहन
हटाएंसुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बन्धु
हटाएंबहुत आकर्षक श्रृंगार रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बहन
हटाएंअति सुन्दर भाव सृजन ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंपूर्णिमा का चाँद सम्मुख हो रही साकार हो
जवाब देंहटाएंस्वर्ग से उतरी परी का स्वर्णमय आकार हो
तुम हमारे सदन-उपवन-वन-विजन में बस गयी,
प्रात की पावन सुरभियुत पवन का व्यवहार हो।
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर...
लाजवाब सृजन।
हार्दिक आभार बहन
हटाएंकाम है या मोह है या प्रेम है या वासना।
जवाब देंहटाएंनेह का आनन्द है या बिछुड़ने की त्रासना।
कौन विश्लेषण करे या संश्लेषण मेंं जुटे,
कर रहा अव्यक्त की जैसे सतत आराधना।
अति सुंदर सृजन...
धन्यवाद भाई
हटाएंधन्यवाद भैया
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