मेरे हिसाब से ऑन लाइन शिक्षा का यह प्रपञ्च अब बन्द होना ही चाहिये। कम से कम प्राथमिक कक्षाओं में तो अवश्य ही। कई कारण हैं।
1- बालकों के स्वास्थ्य के अनुकूल नहीं है ऑन लाइन शिक्षा।
2-अभिभावक की निगरानी व उनके सहयोग के बिना इन बालकों के लिये कुछ भी कर पाना असम्भव।
3-ऑन लाइन पढ़ाने में अध्यापक का समय, श्रम व संसाधन भी अधिक व्यय होता है।
4-विद्यालय भले ही कितना भी श्रम करे, अभिभावक के लिए सिरदर्दी और उसका शोषण प्रतीत होता है।
5-जैसा कि फ़ोटो व समाचार से ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार व कोर्ट के लिए इस शिक्षा का कोई मूल्य नहीं।
6-कोरोना के जाल में फंसी हुई सरकार व संगठनों के लिए प्राइवेट स्कूलों में संलग्न कर्मचारियों की आजीविका तक की कोई चिन्ता नहीं।
7-यह शिक्षा निर्धन बालकों के लिए दुष्स्वप्न है। कहीं महंगा मोबाइल नहीं तो कहीं रिचार्ज नहीं कहीं सब है तो कनेक्टिविटी नहीं।
8-यह शिक्षा समाज के लिये भेदपूर्ण है तथा मानक विहीन है।
9-जैसा कि सरकार व अभिभावकों की मानसिकता दिखाई देती है तथा जितने समय तक स्कूल बन्द रहा है उससे तो लगता है कि यह सत्र अब शून्य घोषित कर देना चाहिए अथवा यह घोषित करना चाहिए कि सत्र अप्रैल से नहीं होगा कब से होगा इसकी सूचना भविष्य में दी जायेगी। सत्र में 4 माह गुजर गये है अगले दो माह स्कूल खुलने की सम्भावना नजर नहीं आती अक्तूबर में क्या सम्भावना होगी पता नहीं।
अंत में स्कूल नहीं तो फ़ीस नहीं, फ़ीस नहीं तो परीक्षा नहीं परीक्षा नहीं तो अगली कक्षा नहीं, अगली कक्षा नहीं तो छात्र दूसरे स्कूल में चला जायेगा, इसकी टेंशन नहीं क्योंकि दूसरे स्कूलों से बच्चे आ जायेंगे। स्थिति नहीं बदलेगी सिर्फ स्कूल और बच्चे बदल जाएंगे। फिलहाल प्राइवेट स्कूल शिक्षक और प्रबन्धक रोटी नहीं खाते और स्कूल इतना चोखा बिजनेस है कि एक साल कमाओ 10 साल खाओ सरकार क्यों चिंता करे। आखिर स्कूलों की प्रोडक्टिविटी ही क्या है?