शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

प्राइवेट शिक्षक की पीड़ा

एक #प्राइवेट_शिक्षक की पीड़ा

इस कोरोना ने निकम्मा कर दिया।
आसमां से ला जमीं पर धर दिया।।
इस जुलाई में जिधर भी पग बढ़े,
नैन ऊपर किन्तु नीचे सिर किया।
धो गया सावन बिना बरसे हमें,
आँसुंओं ने बिन बहे उर तर किया।
हम बिधाता हैं नए निर्माण के,
पा उपेक्षा चहुँदिशा मन भर गया।
हम जिए हैं या मरे परवाह क्या?
हर किसी ने दूर अपना कर किया।


सोमवार, 27 जुलाई 2020

गिद्ध

मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टर लोग हर बात की जिम्मेदारी मरीज और उसके तिमारदारों पर डालते हुए बात बात में बताओ ऐसा करें बताओ ऐसा न करें मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। कहने का मतलब यह है कि मैंने महसूस किया है किमरीज का हित अनहित नहीं सोचते अपितु मरीज के साथ आये हुए लोगों की इच्छानुसार इलाज करते हैं वो तीमारदारों के रिस्क पर किन्तु कोरोना के मामले में सरकार से लेकर पब्लिक तक जिस तरह जाँच कर करा कर हर आदमी को जबरदस्ती कोरोना का मरीज साबित करके इलाज कर देने में जुटे हुए हैं इस तत्परता का क्या कारण है? काश ऐसी ही तत्परता अन्य रोगों के इलाज को लेकर भी दिखाई दे तो शायद कोई होरी कोई धनिया मेडिकल कॉलेज में डेरे तम्बू लेकर असहाय न दिखाई दे।
आखिर कोरोना के नाम पर असली फायदा किसे हो रहा है आज इस बात की जांच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किये जाने की आवश्यकता है। इतना तो तय है किसी ने कोरोना के नाम पर पूरी दुनिया को हैक कर लिया है।
आखिर बीमार किसे कहते हैं? इसे परिभाषित किये जाने की आवश्यकता है। हममें से प्रत्येक व्यक्ति में टीबी, हैजा, फ्लू,इंफ्लुएंजा आदि के बैक्टीरिया व वायरस पाये जाते हैं क्या हम सबको जांच कर कर के रोगी सिद्ध कर दें। कम से कम कोरोना के मामले में यही हो रहा। मै आपको बताऊँ हममें से बहुत कम लोग इस बात पर गौर करते हैं कि रोगियों का जो आँकड़ा आपके हृदय में डर पैदा करने के लिए टीबी पर दिखाया जा रहा है वह संक्रमितों के हैं न कि रोगियों के। इसी प्रकार मौत का आँकड़ा भी वास्तव में मुझे कोरोना है इस कारण मरने वालों की संख्या ज्यादा होगी बनिस्बत उनके जो वास्तव में कोरोना से मरे। तो बन्धुओं घबराएं नहीं सरकार और मीडिया को हौवा खड़ा करने दें और आप अपना स्वाभाविक जीवन जियें। कोरोना, इम्युनिटी ड्रग्स का व्यापार, लॉकडाउन बहुत हो गया। सामान्य मनुष्य मौत से इतना ज्यादा डरता तो कोई युद्ध नहीं होता, कोई समुन्दर में मछली पकड़ने नहीं जाता, कोई अंतरिक्ष में जाने की नहीं सोंचता, न कोई पहाड़ की तलहटी में घर बनाता जहाँ मौत हर समय मुँह फैलाये रहती है। तो फिर ये कौन से गिद्ध हैं जिन्होंने ने कोरोना के नाम पर मनुष्य को गीदड़ बना दिया है इन गिद्धों का भय छोड़ो और शेर बनो।

शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

ऑन लाईन एजुकेशन

मेरे हिसाब से ऑन लाइन शिक्षा का यह प्रपञ्च अब बन्द होना ही चाहिये। कम से कम प्राथमिक कक्षाओं में तो अवश्य ही। कई कारण हैं। 
1- बालकों के स्वास्थ्य के अनुकूल नहीं है ऑन लाइन शिक्षा।
2-अभिभावक की निगरानी व उनके सहयोग के बिना इन बालकों के लिये कुछ भी कर पाना असम्भव।
3-ऑन लाइन पढ़ाने में अध्यापक का समय, श्रम व संसाधन भी अधिक व्यय होता है।
4-विद्यालय भले ही कितना भी श्रम करे, अभिभावक के लिए सिरदर्दी और उसका शोषण प्रतीत होता है।
5-जैसा कि फ़ोटो व समाचार से ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार व कोर्ट के लिए इस शिक्षा का कोई मूल्य नहीं।
6-कोरोना के जाल में फंसी हुई सरकार व संगठनों के लिए प्राइवेट स्कूलों में संलग्न कर्मचारियों की आजीविका तक की कोई चिन्ता नहीं।
7-यह शिक्षा निर्धन बालकों के लिए दुष्स्वप्न है। कहीं महंगा मोबाइल नहीं तो कहीं रिचार्ज नहीं कहीं सब है तो कनेक्टिविटी नहीं।
8-यह शिक्षा समाज के लिये भेदपूर्ण है तथा मानक विहीन है।
9-जैसा कि सरकार व अभिभावकों की मानसिकता दिखाई देती है तथा जितने समय तक स्कूल बन्द रहा है उससे तो लगता है कि यह सत्र अब शून्य घोषित कर देना चाहिए अथवा यह घोषित करना  चाहिए कि सत्र अप्रैल से नहीं होगा कब से होगा इसकी सूचना भविष्य में दी जायेगी। सत्र में 4 माह गुजर गये है अगले दो माह स्कूल खुलने की सम्भावना नजर नहीं आती अक्तूबर में क्या सम्भावना होगी पता नहीं।
अंत में स्कूल नहीं तो फ़ीस नहीं, फ़ीस नहीं तो परीक्षा नहीं परीक्षा नहीं तो अगली कक्षा नहीं, अगली कक्षा नहीं तो छात्र दूसरे स्कूल में चला जायेगा, इसकी टेंशन नहीं क्योंकि दूसरे स्कूलों से बच्चे आ जायेंगे। स्थिति नहीं बदलेगी सिर्फ स्कूल और बच्चे बदल जाएंगे। फिलहाल प्राइवेट स्कूल शिक्षक और प्रबन्धक रोटी नहीं खाते और स्कूल इतना चोखा बिजनेस है कि एक साल कमाओ 10 साल खाओ सरकार क्यों चिंता करे। आखिर स्कूलों की प्रोडक्टिविटी ही क्या है?

गुरुवार, 23 जुलाई 2020

निषिद्ध है

डाँट और मार फटकार नहीं सकते हैं,
बालकों पे अत्याचार करना निषिद्ध है।
प्रेम और पुचकार नीयत के प्रश्न बन्धु,
गोद में उठा के प्यार करना निषिद्ध है।
बठिया नहीं हूँ बन्धु मेरे दिल दिमाग है,
होके उदासीन पार करना निषिद्ध है।
आज के समाज की है दशा ही विचित्र मित्र,
शंकाहीन व्यवहार करना निषिद्ध है।

सोमवार, 20 जुलाई 2020

एक और लॉक डाउन

10 दिन का लॉक डाउन और शुरू। इस बार कोरोना हरदोई जिले से गायब। आशावाद बहुत बड़ी चीज है इसी आशावाद के सहारे भारत में आजतक हंसों से लेकर उल्लुओं तक की सरकारें देश की जनता ने बनवायीं हैं। इसी आशावाद के सहारे हमने ताली व थाली बजाई, दिए जलाये, जनता ने लॉक डाउन की महीनों की तकलीफ झेली। मगर कोरोना हनुमान जी की पूँछ हो रहा है। खैर कुछ व्यापारी नेताओं को शायद अपने रिज्यूमे में इस बात की कमी लग रही थी कि कोरोना की रोकथाम में उनका घोषित योगदान क्या है? सो कर डाली डिमांड कि साहब हमारी भी ले लो सहायता। घोषित कर दो दस दिन का लॉक डाउन। अब कोई दुकानदार पिछवाड़े से सामान नहीं बेचेगा। कोई दुकान के बाहर शटर गिराकर नहीं बैठेगा और न ही दायें बायें देखकर बचते बचाते सामान बेचेगा। कोई कह रहा था कि व्यापारी नेताओं में अधिकांश का खुद का तो कोई कारोबार है नहीं लॉक डाउन करवा के गरीब दुकानदार को परेशान कर दिया। अरे भाई यह बात तो व्यापारियों को अपना नेता चुनते समय सोंचनी चाहिए थी। अब तुम्हें क्या पता था कोरोना आएगा और दुनिया की तस्वीर बदलकर जाएगा। खैर जो है सो झेलो। 

गुरुवार, 16 जुलाई 2020

प्राइवेट स्कूल व संकटकाल

प्राइवेट विद्यालय विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र के आजकल घोर आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। कुछ लोग तर्क देते हैं कि प्राइवेट विद्यालयों ने खूब कमाया उन्हें क्या दिक्कत तो बन्धु कब्र का हाल मुर्दा ही जानता है। पैसा आनी जानी चीज है किसी के पास जमा रहती हो तो रहती हो मेरे जैसे लोगों के पास नहीं रहती। आज मुझे मेरे पिता जी याद आते हैं पैसा बचाकर रखने को लेकर उनसे प्रायः मेरी बहस हो जाती थी। वह कहते थे संकट काल के लिए कुछ रकम बचाकर रखनी चाहिए मैं उनकी बात को अभी तक हवा में उड़ाता चला आया था। उनको गुजरे 3 माह भी नहीं बीते थे कि मुझे पता चल गया वह सही थे और मैं गलत। काश मैंने कभी उनकी बात को गम्भीरता से लिया होता। मैं प्रबन्धक हूँ किसी तरह से अध्यापकों को घर घर भेज कर पैसा जुटा रहा हूँ वह भी अप्रैल मई जून की फीस कोई अभिभावक नहीं दे रहा है कोई कोई अभिभावक मार्च व इससे पहले की फीस जमा करने में नाराज हो रहे हैं किसी किसी अशिक्षित अभिभावक ने कुछ अपशब्द भी कहे। खैर जो उपलब्ध हो पाया है उसमें अप्रैल मई का वेतन दे रहा हूँ शेष विद्यालय खुलने पर। ईश्वर मुझे क्षमा करे।

मंगलवार, 7 जुलाई 2020

अखण्ड श्री लंका

अखण्ड श्री लंका
आजकल अपनी अपनी सीमाओं की सुरक्षा और उनके विस्तार को लेकर जिस तरह चीन, नेपाल जैसे देश लफड़ा मचाये हैं तो मुझे श्री लंका पर तरस आता है। मैंने सुना है वहाँ कभी कोई ब्राह्मण राजा हुआ जिसका नाम था रावण। ये नामुराद राजनीतिज्ञों व नस्लवादियों का भला हो कि उसे राक्षस बता दिया। उसने तीनों लोकों पर विजय प्राप्त की सुर असुर गन्धर्व किन्नर यक्ष रक्ष सब उसके आधीन विश्व के सातों महाद्वीप सातों समुन्दर उसकी हुकूमत।कहने का मतलब पूरी दुनिया में एकक्षत्र उसका शासन चारों ओर जय रावण जय रावण जय रावण की गूँज। फिर उसके खिलाफ षड्यंत्र हुआ राम नामक साधारण मनुष्य उसके सामने खड़ा किया और उसके भाई को राजा बनाने का लालच दिया। बस शुरू हो गया अखण्ड श्री लंका को ध्वस्त करने का सपना। श्री लंका को तहस नहस कर तमाम छोटे छोटे देश बने। भारत, चीन, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, जापान, अमेरिका, रूस और अन्य देश ये सब उसी श्री लंका के बच्चे हैं। आज जरूरत इस बात की है कि रावण के अखण्ड श्री लंका के सपने साकार करने में अपना योगदान दें। आओ सभी देशों के एकीकरण के लिए कार्य करें और रावण की आत्मा को तृप्त करें। सबसे पहले छत्तीसगढ़, बस्तर, महाराष्ट्र के दुर्ग उसे सौंपें। फिर सौंपें कैलास। फिर चलें सिंगापुर, मलेशिया, कम्बोडिया, चीन जापान जहाँ रहते थे रावण के नाते रिश्तेदार उन सबका विलय करें। अफ्रीका और अमेरिका 【जहाँ साम्राज्य था रावण के भाई अहिरावण का】का विलय करें। जो मार्ग में अवरोध खड़ा करे उसका समुद्र में विलय करें। बस विलय विलय विलय अन्यथा प्रलय। एक लक्ष्य एक ध्येय, अखण्ड श्री लंका प्रेय। मैं गम्भीर हूँ। अब छोटा देश है तो क्या सब बड़े बड़े फैसला कर लोगे कौन सी जमीन तुम्हारी कौन सी हमारी।  सबूत मत माँगना रावण के वंशज जो कह देते हैं प्रमाण होता है। फेसबुक व्हाट्स एप पर सर्वत्र विद्यमान हैं ये नो टेंशन। जय लंका। अब सोना चाहिए।

बुधवार, 1 जुलाई 2020

पढ़ाई

खुसरो बहुत उदास है, खुले नहीं स्कूल।
जो पाया था ज्ञान वह, सब बैठा है भूल।।
इंटरनेट की गाँव में, हुई न अच्छी पैठ।
भट्ठा विद्या दान का, यहाँ गया है बैठ।।
कोरोना ने रोक दी, बच्चों की बढ़वार।
शिक्षा हो पायी नहीं, बन्धन हुए अपार।।
पिंजरे का तोता बना, खुसरो तके अगास।
कोरोना मर जाए तो, जीवन भरे उजास।।
चित्त हो गए गुरु जी, चेहरा भरे कराह।
रोक पढ़ाई पर लगी, कैसे हो निर्वाह।।

हमारीवाणी

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