राजनीति के फंद में, बोला
माँ से पूत।
मेरे बप्पा वही हैं, दीजै
मुझे सबूत।।1||
कोई चौकीदार है और कोई
है चोर।
घुला चुनावी रंग है रहे
परस्पर बोर।।2||
चौकीदारी करो या या फिर
बेचो चाय।
जब तक वोटर नासमझ, कमी
मौज में नाय।।3||
गहरी नदी चुनाव की, बड़ी
तेज है धार।
हाथी सायकिल पर चढ़ा, कैसे
होगा पार।।4||
कृपया पोस्ट पर कमेन्ट करके अवश्य प्रोत्साहित करें|
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-03-2019) को "चमचों की भरमार" (चर्चा अंक-3284) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद बड़े भाई
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