सोमवार, 11 नवंबर 2013

बुधवार, 6 नवंबर 2013

कैसी डॉक्टर हैं?

डॉ0 नाम सुनते ही जहन में दूसरे भगवान का रूप कौंधता है। मगर बड़ी निराशा हुई आज का समाचार पढ़ कर की सांसद धनंजय सिंह की पत्नी जागृति सिंह जो कि पेशे से डॉक्टर हैं उनहोंने नौकरानी को पीट पीट कर मार डाला। इतना ही नहीं यह भी सुनने में आया है कि वह अपने नौकरों से प्रायः ऐसा दरिंदगी पूर्ण कार्य व्यवहार करती रहतीं थीं। थू है ऐसी नारी पर। नारी को पहले ही देवी कहा जाता है, ममता की मूर्ति कहा जाता है ऊपर से जब वह डॉक्टर हो तो उससे अतिरिक्त दया भावना की अपेक्षा की जाती है। क्या सोचती हैं जागृति सिंह खुद को एक देवी या चुड़ैल? डॉक्टर का दिल तो तुम्हारे पास नहीं हो सकता।

मंगलवार, 5 नवंबर 2013

विश्वास मैं नहीं करता

लड़का और लड़की में भेद मैं नहीं करता।
एक पर एक होकर बात भी नहीं करता।
वक्त उस घाट पर आकर खड़ा है यारों।
बाप और बेटी में विश्वास मैं नहीं करता।

संतन की इज्जत

कोई संत सोनी के चक्कर में जेल गये।
कोई संत धरती में सोना ढुँढ़ाइ रहे।
संतन के वेश में असंत घुसपैठ करे।
संतन की इज्जत धुल में मिलाई रहे।

बच्चा सोच रहा है किताब में लिखा है
केंद्र में केंद्र सरकार
राज्य में राज्य सरकार
क्या मुसीबत है अब याद करो उन्नाव में शोभन सरकार
क्या अंतर है दोनों में
एक सपने दिखाती है दुसरी देखती है।

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2013

विषमबाहु त्रिभुज

विषमबाहु त्रिभुज:-विषमबाहु त्रिभुज एक ऐसा त्रिभुज जिसकी तीनों भुजाएं असमान लम्बाई की होती हैं। उदाहरण के लिए कोई त्रिभुज ABC इस प्रकार हो कि भुजा AB=16सेमी, भुजा BC=12 सेमी तथा भुजा AC=20 सेमी हो तो वह त्रिभुज विषमबाहु त्रिभुज कहा जायेगा।
प्रायः ऐसे त्रिभुज का क्षेत्रफल निकलना कठिन होता है।
मैंने इंटरनेट पर खोजने की कोशिश की तो मुझे हिंदी भाषा में इस विषय पर कुछ खास उपलब्ध नहीं हुआ तो हिंदी भाषियों के लिए यहाँ विषमबाहु त्रिभुज का क्षेत्रफल निकालने का तरीका प्रस्तुत है।
सूत्र इस प्रकार है:-
A=√s(s-a)(s-b)(s-c)
A=क्षेत्रफल
s=त्रिभुज का अर्ध-परिमाप
a b c क्रमशः त्रिभुज की भुजाये हैं।
उपरोक्त माप के त्रिभुज का क्षेत्रफल इस प्रकार निकालें।
s=(16+12+20)/2सेमी=24सेमी
A=√24(24-16)(24-12)(24-20)
या A=√24*8*12*4
या A=√24*12*8*4
या A=√24*4*12*8
या A=√96*96
या A=96 सेमी^2



मेरे एक पाठक ने मुझसे पूछा कि  सिद्ध करें कि विषमबाहु त्रिभुज के क्षेत्रफल को निकालने के लिए फार्मूला A=√s(s-a)(s-b)(s-c)   सत्य है|
तो अपनी लघु बुद्धि से सिद्ध करने का प्रयास कर रहा हूँ|
माना एक त्रिभुज ABC दिए गये चित्र के अनुसार है|
विषमबाहु त्रिभुज











   
अब (i) में BD का यह मान रखने पर 



शनिवार, 26 अक्टूबर 2013

तितलियाँ


                                                                                  चित्र   ( tashu352.wordpress.com/2017/09) से साभार



चाचू तुम्हारे शहर की तितलियाँ शैतान हैं।
उन्हें रंग बिरंगी क्या कहूँ जो रंग की दुकान हैं।
फुले हुए मुखड़े तरोताजा गुलाबों की तरह,
खुशबू लुटा बेला सी ज्यों दिल से उड़े अरमान हैं।
वे चहकती फिर रहीं पर खोलकर हर डाल पर,
उड़ने लगीं अंजाम से बेखबर नादान हैं।
यूं तो आजादी के हैं हम भी बड़े पक्के मुरीद,
पर गुलामी ने किये हम पर बहुत अहसान हैं।
लैंप की लौ काँच के परदे में है पाती सुकून।
वक्त की लू-आंधियाँ इसके लिए हैवान हैं।

सोमवार, 14 अक्टूबर 2013

उजाले ने कहा

सिर कलम कर दूँगा अँधेरे का,
जब कहो मैंने कहा।
नहीं ऐसा गजब करना जरा ठहरो,
उजाले ने कहा।
अँधेरा ही सहारा है कि हमको,
पूंछते हैं लोग।

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2013

बदल गया स्कूल

बाबा कबीर का एक दोहा याद आता है,
"गुरु कुम्हार घट शिष्य है गढ़ गढ़ काढ़इखोट।
अंतर हाथ सहार दइ बाहर दइ दइ चोट ।।"

वक्त बदल गया तो इस दोहे को छोड़िये जनाब और यह कुंडलिया पढ़िये।

"गुरु विक्रेता शिष्य है, क्रेता अति धनवान।
पैसा खींचत गुरु भला, भला न पकड़े कान।
भला न पकड़े कान, कभी अपने शिष्यों का।
देवे भले न ज्ञान, कभी अपने हिस्सों का।
विद्यालय को छोंड़ क्लास ट्यूशन की लेता।
है पैसे की होड़, ज्ञान  का गुरु विक्रेता।।"

शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

चाची जी से सीख लिया

जब वह घर आते हैं तो बच्चों के लिए जशन का माहौल होता है वजह ये कि वह आये हैं तो उनके खाने पीने खेलने आदि का कुछ सामान भी लाये होंगे।
पिछली बार जब वह घर आये थे बच्चों के लिए कपड़े और मिठाइयों के साथ ढेर सारे खिलौने भी लाये थे। आज भी उनके घर आने की खबर सुनकर बच्चे सुबह से ही उनके इंतजार में पलक पांवड़े बिछाए बैठे थे, जैसे ही टैक्सी दरवाजे पर रुकी बच्चों ने लपककर उनका सूटकेश अपने छोटे छोटे हाथों से संभाला और घसीट कर उसे ड्राइंग रूम तक ले गये लेकिन यह क्या सूटकेश में ताला लगा हुआ था। पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ। सब बच्चे धीरे धीरे वहाँ से खिसक लिए। किन्तु नन्हीं सी टीना ने पूंछ ही लिया चाचा जी सूटकेश में ताला डालना क्या नई नई चाची जी से सीख लिया।

सोमवार, 9 सितंबर 2013

दुकान चल रही है।

एक लेख पढ़ा लेखक विचार कर रहा था कि तमाम आरोपों के लगने जेल आदि हो जाने के बाद भी निर्मल बाबा और आसाराम बापू जैसे लोगों की दुकाने चल क्यों रही हैं। उनके यहाँ भीड़ और लोगों की आस्था में कमी क्यों नहीं होती।
अरे भाई यह हिंदुस्तान भेड़िया दसान यूँ ही तो नहीं कहा जाता है। यहाँ किसी की दुकान बंद नहीं होती। एक कहावत कही जाती है कसाई के कोसने से गाय तो नहीं मरती आपके सोंचने से दुकान भी बंद नहीं हो सकती। यहाँ दुकानें चल रही हैं जेल से आने के बाद भी साधू संतों की। किसी को ताज्जुब क्यों है? यहाँ जेल के अंदर दुकानें चल रही हैं गुंडे, मवाली, माफियाओं, नेताओं, चोरों, तस्करों, पुलिसवालों की। सभी के समर्थक मौजूद हैं समाज में।जितना बड़ा अपराधी उतनी बड़ी दुकान उतनी ज्यादा भीड़ धर्म हो या राजनीति आज के भारत का यही सच है।

लोकतन्त्र बनाम चोरतन्त्र

अब्राहम लिंकन ने कहा था "लोकतन्त्र जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा शासन है।"
काश वह जीवित होते और भारत की वर्तमान मनमोहन सिंह सरकार को देखते तो यही कहते लोकतन्त्र चोरों की ,चोरों के लिए, चोरों के द्वारा सरकार है।
मुझे ताज्जुब नहीं होता की किस तरह से घोटाले दर घोटाले होते हैं, अर्थव्यवस्था लडखडाती है, पड़ोसी आँख दिखाते हैं, संसद हंगामे की भेंट चढ़ जाती है और सरकार कामचलाऊ रवैया अपनाते हुए जैसे दीन दुनिया से बेपरवाह अपना टाइम पास करती जा रही है। यह देखकर बड़ी निराशा होती है कि दागियों को संसद में बनाये रखने और उन्हें संसद में अधिक संख्या में पहुँचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का निर्णय पलटने के लिए पक्ष और विपक्ष सभी एकजुट हो जाते हैं। न तो विधेयक लाकर सदन में पास होने में देर लगती है और न अध्यादेश जरी करने में किन्तु यदि लोकहित का कोई मामला आ पड़े तो बड़ी हीला-हवाली होती है। आज भी संसद में अनेक विधेयक चर्चा और पास होने का इंतजार कर रहे हैं। 
यह सब देखकर तो यही लगता है की सत्ता हो विपक्ष चोरों की मौज है।

गुरुवार, 5 सितंबर 2013

बुधवार, 3 जुलाई 2013

केदार घाटी में

तुम क्यों इतने निष्ठुर बने।
बने तुम उठकर बादल घने।
घने होकर क्यों इतना बहे।
बहे तुम ऐसे पर्वत ढहे।
ढहे घर होटल पथ पुल सभी।
सभी आश्रय के साधन गये।
गये जो जन ले श्रद्धा बड़ी।
बड़ी आफत क्यों उन पर पड़ी।
पड़ी लाशें थीं यहाँ वहाँ।
वहाँ बिछुड़े साथी औ'सगे।
सगे बस अपने जी को भगे।
भगे लेकर वे अपनी व्यथा।
व्यथा भी अपनी किससे कहें।
कहें तो उनकी कौन सुने।
सुने तो सुनकर भी क्या करे।
भेद गया सारा मिट जल जीव और माटी में।
शंकर तुम्हारा क्रोध नाचा क्यों केदार घाटी में।

प्रकृति हो गई स्वच्छन्द

क्रोध में झटक दिया सिर,
नदियाँ विह्वल हुईं फिर,
देखते ही देखते शिव ने,
शवों के अम्बार लगा दिए।
उत्तराखण्ड में लोगों की,
रोजी रोटी घर द्वार हिला दिए।
प्रकृति हो गई स्वच्छन्द।
मनुष्य सिद्ध हुआ मतिमन्द।

प्यार का जलवा

तेरे प्यार का जलवा हर सूँ देखा।
मैंने दुनिया को देखा कुछ यूँ देखा।

छवि माध्वी

अम्बर से उतरी रजनी तू,
घूंघट घन तो चेहरा चाँद।
प्रेयसि तनिक उजाला कर दे।
रूप राशि दर्शन का वर दे।
छवि माध्वी मन पीने वाला।
छिपा न अपने तन का प्याला।

मंगलवार, 18 जून 2013

दर्पण का करिहौं

तिय समुहे दर्पण का करिहौं।
नैनन में निज बिम्ब निहरिहौं।
वहि छवि में अपनी छवि लखिहौं।
रूप -राशि हिरदय में  रखिहौं।

सोमवार, 27 मई 2013

सप्तसिंधु-महाकाव्य

डॉ0 अनंतराम मिश्र अनंत जी नदी विषयक ज्ञान के महान वेत्ता हैं। उन्होंने अपने अथक परिश्रम से सप्तसिंधु के रूप में साहित्य जगत को एक अमूल्य निधि प्रदान की है। एक सुधी व जिज्ञासु पाठक के लिए सप्तसिंधु वास्तव में उत्तर भारत की सात नदियों सरस्वती,शतद्रु,परूष्णी,असिक्नी,वितस्ता,विपाशा तथा सिन्धु के विषय में जानकारी का अद्भुत खजानाहै।
षोडष प्रवाहों में विभक्त यह पुस्तक भारतीय संस्कृति में प्रचलित सोलह संस्कारों व श्रॄंगारों का स्मरण करा देती है।
आत्मकथात्मक शैली में रचित यह महाकाव्य उपरोक्त नदियों के ऐतिहासिक, भौगोलिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक व अर्थशास्त्रीय आदि अनेक पक्षों पर प्रकाश डालता है।
डॉ०अनन्त जी हिन्दी के साथ संस्कृत भाषा के भी विद्वान हैं इसकी झलक उनकी इस रचना में आद्योपांत दिखाई देती है।

शनिवार, 11 मई 2013

बड़े बे आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले

ससुरे पहले इस्तीफा दे देते तो कुछ सम्मान तो बचा रहता लेकिन क्या करें ये भी बेहयाई घुट्टी में पी रखी है जी हाँ मैं अपने कानून मंत्री और रेल मंत्री की ही बात कर रहा हूँ। ये खुले आम दोषी सिद्ध हो जाने पर भी आखिरी क्षण तक कुर्सी से चिपके रहे। लगता नहीं ये वही कांग्रेस पार्टी है जो देश की आजादी के लिए लड़ी। आज अपने नेताओं के भ्रष्टा चार के बोझ तले दबी जा रही है।

रविवार, 7 अप्रैल 2013

वहशीपन



कैसा अपना देश हो गया कैसी है ये लाचारी।
वहशीपन से सहम गयी है आर्यावर्त्त की नारी।
क्यों लोगों ने भुला दिये आदर्श पुरातन अपने।
टूट रहे हैं राष्ट्रपिता ने देखे थे जो सपने।
रावण से भी नहीं हुई थी यों सीता की ख्वारी।
वहशीपन से सहम गयी है आर्यावर्त्त की नारी।
जिस गरिमा के लिये देश है सारे जग से न्यारा।
उसको धूल-धूसरित करते देकर जख्म करारा।
जिन आदर्शों की खातिर हम विश्व गुरू कहलाये।
कहाँ गये आदर्श सभी वो आकर कोई बताये।
कैसे रह पायेंगी सुरक्षित अब बेटियाँ हमारी।
वहशीपन से सहम गयी है आर्यावर्त्त की नारी।
पूजनीय नारियाँ जहाँ समझी जाती थीं अब तक।
वहीं देवियाँ अब बोलो ये जुल्म सहेंगी कब तक।
कुत्सित हुए हृदय लोगों के लज्जा जरा न आती।
अपने बेटों के कुकृत्य से माँ भारती लजाती।
रो उठती उसकी भी आत्मा घाव मिले हैं भारी।
वहशीपन से सहम गयी है आर्यावर्त्त की नारी।
फाँसी देने से व्यभिचारी सजा नहीं पायेंगे।
कुछ दिन बाद इसी घटना भूल सभी जायेंगे।
सजा दिलाओ ऐसी जिससे सबक सभी वहशी लें।
उर हों भयाक्रान्त उनके अधरों से छीन हँसी लें।
करो नपुँसक भारत में जो भी हो बलात्कारी।
तभी मुस्करा पायेगी फिर आर्यावर्त्त की नारी।
वहशीपन से सहम गयी है आर्यावर्त्त की नारी।

             अनंत राम मिश्र ग्राम-औड़ेरी, तहसील-शाहाबाद

                          जिला-हरदोई (उत्तर प्रदेश)   भारत

शनिवार, 30 मार्च 2013

द्वारिकेश



धाये धन-धाम छोड़ द्वारिका के नाथ कभी,
द्रौपदी की आन मान क्षण में बचाने को।
सुना ज्यों सुदामा मित्र द्वारिकेश द्वार खड़े,
दौड़ चले उठकर मित्रता निभाने को।
प्रण छोड़ चक्रधर धाये गंगापुत्र पर,
कुन्तिजात युद्धवीर जीवन बचाने को।
ऐसे भक्त प्रेमी भगवान को न ध्याये नित्य,
भार रूप भूमि पर जीवन बिताने को।

शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

रवि साकार देवता जग में



प्राची में सूरज मुसकाया, धरती का कण कण हर्षाया

धूप गगरिया क्या छलकायी, जीवन का सागर लहराया।

सूरज दादा के आने से, अँधियारे ने पँख समेटे।

सारी रात राज में जिसके, बच्चे बूढ़े भयवश लेटे।

मोती जैसे दाँत दिखाकर, खिल खिल हँसे पेड़ के पल्लव।

सुन्न घोंसले संज्ञा पाकर, आसमान में करते कलरव।

मग जीवंत चले बटरोही, हाटों में हलचल हहरायी।

अरूण सूर्य की किरण श्रंखला, रज में स्वर्णप्रभा बन छाई।

निराकार भी होगा कोई, रवि साकार देवता जग में।

इसी परम की ऊर्जा रमती, थलचर, जलचर, नभचर सबमें।

 

 

 

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