धाये धन-धाम छोड़ द्वारिका के नाथ
कभी,
द्रौपदी की आन मान क्षण में बचाने
को।
सुना ज्यों सुदामा मित्र द्वारिकेश
द्वार खड़े,
दौड़ चले उठकर मित्रता निभाने को।
प्रण छोड़ चक्रधर धाये गंगापुत्र
पर,
कुन्तिजात युद्धवीर जीवन बचाने को।
ऐसे भक्त प्रेमी भगवान को न ध्याये
नित्य,
भार रूप भूमि पर जीवन बिताने को।
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