दिल से दिल की बात करी, और चल दिये।
मन में न कोई प्रश्न था, पर उसने हल दिये।।1।।
चढ़कर चिराग हुस्न का रक्खा मुंडेर पर,
जालिम को खबर ना हुई, कैसे कतल किये।।2।।
तुम भी तो एक रोज गए थे उसी डगर,
पत्थर तुम्हें कहा क्या, तुम तो पिघल लिये।।3।।
सब कुछ बजार में मुझे मन का मिला नहीं,
जिन्दा रहा हूँ इसलिये अबतक गरल पिये।।4।।
माना कि दूर लगती है सूरज की रोशनी,
पर ज्येष्ठ का महीना, तन मन विकल किये।।5।।
यह प्रेम की कमाई कोई नौकरी नहीं है,
अब तक वसन सिये जो उज्ज्वल 'विमल' सिये।।6।।
कृपया पोस्ट पर कमेन्ट करके अवश्य प्रोत्साहित करें|
मन में न कोई प्रश्न था, पर उसने हल दिये।।1।।
चढ़कर चिराग हुस्न का रक्खा मुंडेर पर,
जालिम को खबर ना हुई, कैसे कतल किये।।2।।
तुम भी तो एक रोज गए थे उसी डगर,
पत्थर तुम्हें कहा क्या, तुम तो पिघल लिये।।3।।
सब कुछ बजार में मुझे मन का मिला नहीं,
जिन्दा रहा हूँ इसलिये अबतक गरल पिये।।4।।
माना कि दूर लगती है सूरज की रोशनी,
पर ज्येष्ठ का महीना, तन मन विकल किये।।5।।
यह प्रेम की कमाई कोई नौकरी नहीं है,
अब तक वसन सिये जो उज्ज्वल 'विमल' सिये।।6।।
कृपया पोस्ट पर कमेन्ट करके अवश्य प्रोत्साहित करें|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें